Untold story of Mulayam Singh Yadav : मुलायम सिंह यादव आज हमारे बीच नहीं (Mulayam Singh Yadav Death) हैं, लेकिन उनके किस्से आज हमें याद आ रहे हैं. मुलायम सिंह यादव तीन बार देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रहे. लेकिन उनका जीवन बचपन से ही प्रेरणादायी रहा... हम आपको नेताजी के ऐसे की किस्से बता रहे हैं.
राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह यादव शिक्षक थे और उन्होंने शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरूआत करहल (मैनपुरी) के उसी जैन इंटर कालेज से की थी, जहां से उन्होंने पढ़ाई की थी. क्षेत्रीय जानकार बताते हैं कि उस दौर में उन्हें 120 रुपये प्रति महीना वेतन मिलता था. मुलायम हाईस्कूल में हिंदी और इंटर में सामाजिक विज्ञान पढ़ाया करते थे. मुलायम के बारे में ये किस्सा भी खास है, कि उन्होंने कभी किसी छात्र को डांट-फटकार नहीं लगाई.
मुलायम सिंह यादव के बारे में एक किस्सा मशहूर है, जब को पहलवानी किया करते थे, तो उन्होंने एक बार पुलिस इंस्पेक्टर को बीच मंच पर ही पटक दिया था. घटना 1960 की है, जब मैनपुरी के करहल में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. भारी संख्या में लोग मौजूद थे और कवि दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' कविता पढ़ रहे थे, तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें रोका, तो मुलायम इस बात से इतने नाराज हुए कि दौड़ते हुए मंच की तरफ बढ़े और इंस्पेक्टर को उठाकर पटक दिया. मुलायम जब बाद में यूपी के सीएम बने को तो उन्हीं कवि दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' को हिंदी साहित्य भूषण सम्मान दिलाया.
तारीख थी 8 मार्च 1984, मुलायम तब लोकतांत्रिक मोर्चा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष थे. मुलायम इटावा के लिए निकले थे, कि तभी दो बाइक सवारों ने उन्हें रोक लिया और उनकी कार पर 9 राउंड फायरिंग की, इसमें मुलायम के एक सहयोगी की मौत हो गई और मुलायम बाल-बाल बच गए. तब मुलायम ने किसी का नाम लिए बगैर कहा था कि मेरी हत्या की साजिश रची गई थी, लेकिन मैं भगवान की कृपा से बच गया.
मुलायम सिंह का सपना कभी भी राजनीति में आने का नहीं था, बल्कि वो तो बचपन में पहलवान बनना चाहते थे. मुलायम के पिता सुघर सिंह उन्हें बड़ा पहलवान बनाना चाहते थे. यही वजह थी कि उन्होंने पहलवानी भी सीखी और मुलायम का मनपसंद दांव था चरखा दांव, जिससे छोटे कद के मुलायम बड़े-बड़े पहलवानों को चित कर देते थे.
ये बात 24 फरवरी 1954 की है, जब यूपी में नहर रेट आंदोलन की वजह से खूब हंगामा हो रहा था. तत्कालीन सरकार लोहिया आंदोलन को दबाने के लिए लोहिया और उनके समर्थकों को जेल में डाल रही थी. इटावा में भी उग्र प्रदर्शन हो रहा था. इस दौरान पुलिस ने करीब 2 हजार लोगों को जेल में डाला, इनमें मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे. मुलायम को जब जेल हुई, उस वक्त उनकी उम्र केवल 15 साल थी.