Yogi Returns in UP: भोजपुरिया सुपर स्टार निरहुआ का ये गाना यूपी की चुनावी तस्वीर साफ करने के लिए काफी है... हो भी क्यों न ? 37 सालों बाद देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार (BJP government) रिपीट हुई है. इससे पहले साल 1980-85 में ये कमाल कांग्रेस (Congress) ने किया था...
हालांकि तब के बाद गंगा में बहुत पानी बह गया है...लिहाजा योगी सरकार (Yogi government) का रिपीट करना किसी राजनीतिक चमत्कार से कम नहीं है...वो भी तब जब एंटी इनकंबेंसी हो...बता दें कि साल 2017 में बीजेपी का वोट प्रतिशत 40 फीसदी रहा जो 2022 में भी बरकरार रहा. आइए जानते हैं आखिर क्यों तमाम कयासों और समीकरणों पर भारी पड़ गई योगी मोदी की जोड़ी?
प्लेट- शहर में शासन, गांव में राशन !
कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर योगी सरकार का इकबाल और मुफ्त राशन दो ऐसे काम थे, जिससे कमोबेश उत्तर प्रदेश के हर इलाके में लोग संतुष्ट थे. विपक्ष NCRB के आंकड़े गिना रहा था और आम जनता सूबे का माहौल देख रही थी. जनता को वो तस्वीरें याद रहीं जिसमें कई अपराधी तख्ती लेकर थानों में सरेंडर करने जा रहे थे. कोरोना काल में घर-घर राशन देना भी लाभार्थियों ने याद रखा. दावा है कि 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिला.
प्लेट- किसान आंदोलन पर वोट नहीं पड़े
चुनावी नतीजों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) की जमीनी हकीकत सामने ला दी. यहां के मतदाताओं ने न सिर्फ कथित किसान आंदोलन ( Farmer movement) को नकार दिया बल्कि अखिलेश-जयंत (Akhilesh-Jayant) की जोड़ी को भी भाव नहीं दिया. दरअसल किसानों ने गन्ना मिलों के भुगतान को याद रखा और दंगों के दर्द को नहीं भूले
प्लेट- अखिलेश की रणनीति फेल रही
बीजेपी के बागियों को अपने खेमे में लेने के लिए अखिलेश ने करीने से रणनीति बनाई लेकिन नतीजों में ये कवायद फ्लॉप साबित हुई. दरअसल नतीजे बताते हैं कि अखिलेश ने अपनी-अपनी जातियों के स्वयंभू क्षत्रपों से गठबंधन किया. आलम ये रहा कि कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को जीत का प्रसाद नहीं मिला. दूसरे दलबदलू नेता दारा सिंह चौहान और ओपी राजभर भी खास असर नहीं दिखा पाए.
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प्लेट- हिंदू वोटों को एक करने में सफल रहे
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी दलों में सांप्रदायिकता को बड़ा मुद्दा बनाया पर बीजेपी हिंदू वोटों को बिखरने से रोकने में कामयाब रही. अमित शाह से लेकर योगी ये संदेश देने में कामयाब रहे कि सपा की सरकार का आना हिंदुओं के लिए ठीक नहीं होगा. राम मंदिर निर्माण और अबकी बार मथुरा की बारी का नारा भी कामयाब रहा.
प्लेट- मायावती के उम्मीदवारों का चयन
प्रदेश की कम से कम 50 सीटें ऐसी रहीं सपा-बसपा के बीच सीधी लड़ाई थी. दरअसल कई सीटों मायावती के उम्मीदवार मुस्लिमों का भी वोट झटकने में कामयाब रहे हैं जिसकी वजह से सपा की हार हुई. हालांकि कुछ ऐसी भी सीटें हैं जिन पर बसपा उम्मीदवारों की वजह से इस बार बीजेपी उतने बड़े मार्जिन से नहीं जीत