उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election Result) के नतीजों ने एकबार फिर साबित कर दिया है कि सफल आंदोलनों (Protest) का नेतृत्व करना राजनीति में सफलता की गारंटी नहीं है. जी हां, हम बात कर रहे हैं लगभग एक साल से ज्यादा चले किसान आंदोलन की जिसका नेतृत्व करने वालों में भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भी शामिल थे. वही राकेश टिकैत जिनके आंसुओं ने आंदोलन की बंजर होती जमीन को फिर से उपजाऊ तो बना दिया लेकिन देश की सियासत के केंद्र उत्तर प्रदेश में उनका फैक्टर पूरी तरह फेल साबित हुआ.
ऐसे में ये जानना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर उत्तर प्रदेश में कैसे फेल हुआ राकेश टिकैत फैक्टर
- राकेश टिकैत ने खुलेआम किया सपा-RLD गठबंधन का समर्थन लेकिन फेल हुआ दांव
- पश्चिमी UP में टिकैत का प्रभाव रहा है लेकिन यहां बीजेपी ने किया सूपड़ा साफ
- किसान नेताओं ने कहा- बीजेपी को सजा दो लेकिन नहीं मिली सफलता
- चुनावों से पहले कृषि कानूनों का वापस लिया जाना बना बीजेपी के लिए बना मददगार
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चुनाव के दौरान भी राकेश टिकैत बिना नाम लिए बीजेपी पर निशाना साधते हुए नजर आए थे. गाहे-बगाहे भी अक्सर उन्हें ये कहते सुना जा सकता था कि जनता दिल्ली की सत्ता पर काबिज लोगों से नाराज है और उन्हें दोबारा सत्ता की चाबी नहीं सौंपेगी. तमाम हवाई दावों के बावजूद ग्राउंड पर बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की मेहनत रंग लाई है. ऐसे में ये भी जान लेना जरूरी है कि आखिर कैसे किसान आंदोलन की आंच को बेदम कर बीजेपी ने इतनी जबरदस्त जीत हासिल की.
- किसान आंदोलन के बावजूद बीजेपी ने ग्राउंड पर चलाया 'वेल ऑर्गेनाइज्ड कैंपेन'
- किसानों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने चलाई मुहिम, दिखा असर
- बीजेपी को मिला जाट और मुस्लिम वोटरों का साथ
- प्रदेशवासियों को दिखाई अपराध मुक्त छवि
बीजेपी ने किसान आंदोलन को वापस लेकर अपने विरोध में उठ रहे स्वरों को शांत कर दिया और यूपी में किसान आंदोलन की आंच बेदम दिखी.
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