UP Politics: पूर्वांचल के सियासी समीकरण में बीजेपी की नैय्या पार लगाएंगे राजभर?, कैसा होगा लोकसभा चुनाव?

Updated : Jul 16, 2023 16:32
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Editorji News Desk

UP Politics: लंबे समय से लगाए जा रहे सियासी कयासों को विराम देते हुए आखिरकार ओम प्रकाश राजभर एक बार फिर एनडीए में शामिल हो गए. राजभर 18 जुलाई को दिल्ली में होने जा रही एनडीए की बैठक का भी हिस्सा होंगे. देखना दिलचस्प होगा कि यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव(Akhilesh Yadav) से बिफरे राजभर इस बार बीजेपी के लिए किस हद तक फायदेमंद साबित हो पाएंगे.

क्योंकि पूर्वांचल की 16 सीटों पर जीत-हार का समीकरण तय करने वाला राजभर समाज 2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव(UP Assembly Election) में बीजेपी पर मेहरबान था. इसके लिए ओपी राजभर का बीजेपी के साथ होना माना गया था. यूपी के कुल वोटरों में 4.3 प्रतिशत होने का दावा करने वाले राजभर ने  2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से दूरी बना ली थी तो बीजेपी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था.

 राजभर लोकसभा की 26 और विधानसभा की 153 सीटों पर प्रभाव होने का दावा करते हैं. सुभासपा प्रमुख दावा करते हैं कि उन्हें केवल राजभर ही नहीं बिंद, निषाद, बंजारा, मौर्य, कश्यप, कुशवाहा जैसी अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन हासिल है.

सुभासपा और बीजेपी गठबंधन से दोनों को फायदा

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी(सुभासपा) और समाजवादी पार्टी (samajwadi party) का गठबंधन भले ही उत्साहजनक परिणाम लेकर नहीं आ पाया हो, लेकिन बीजेपी और सुभासपा (sbsp) की जोड़ी का फायदा दोनों ही दलों को हुआ है. साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में सुभासपा के साथ गठबंधन करने वाली बीजेपी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में 2012 में मिली 14 सीटों के मुकाबले 72 सीटें बढ़ाने में सफल रही थी. जबकि समाजवादी पार्टी की सीटें घटकर 9 हो गईं. जबकि सपा को 2012 में वहां 52 सीट मिली थीं. वहीं सुभासपा 2017 में 8 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें 4 सीटों पर सफलता पाई थी और इन सीटों पर 34 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था.

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कौन से लोकसभा सीटों (loksabha seat) पर सबसे ज्यादा प्रभाव?

सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर वाराणसी, जौनपुर, घोसी, लालगंज, गाजीपुर, अंबेडकर नगर, सलेमपुर, आजमगढ़, बलिया, चंदौली, इलाहाबाद, फैजाबाद, बस्ती, गोरखपुर, मछली शहर और भदोही लोकसभा सीटों पर प्रभावी माने जाते हैं.

कौन से विधानसभा सीटों पर सबसे  ज्यादा प्रभाव?

वाराणसी जिले की 05, आजमगढ़ की 10, मऊ की 04, बलिया की 07, गाजीपुर की 07, जौनपुर की 09 और देवरिया की 07 सीटों पर राजभर वोटर्स काफी तादात में हैं. एक अनुमान के मुताबिक, यूपी की 66 सीटों पर 80,000 से 40,000 तक और करीब 56 सीटों पर 45,000 से 25,000 तक राजभर वोटर हैं. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 22 सीटों पर राजभर वोट बैंक का फायदा मिलता दिख रहा था.

किस वजह से राजभर को मनाने में जुटी थी बीजेपी?

बीजेपी (bjp) की ओर से लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर कराए गए प्राइमरी सर्वे में जो परिणाम सामने आए, वह अहम थे. सुभासपा से गठबंधन करने पर जौनपुर, घोसी, आजमगढ़, लालगंज, श्रावस्ती और गाजीपुर में सीधा फायदा होने की बात सामने आई है. ओम प्रकाश राजभर के साथ इलाके का राजभर समाज भी एनडीए की तरफ शिफ्ट हो सकता है. यूपी चुनाव 2022 में इसका प्रकार का प्रभाव दिखा है. इसके लिए राजभर को मनाने और साथ में जोड़ने में पार्टी कामयाब हो गई है.

राजभर के अलावा इन जातियों का भी साथ

 सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर(om prakash rajbhar)  दावा करते हैं कि उन्हें केवल राजभर ही नहीं बिंद, निषाद, बंजारा, मौर्य, कश्यप, कुशवाहा जैसी अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन हासिल है. वे लोकसभा की 26 और विधानसभा की 153 सीटों पर प्रभाव होने का दावा करते हैं.

राष्ट्रपति चुनाव (president election) के समय बनी थी अखिलेश से दूरी

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों के बीच खटास आई. इस दौरान सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान (dharmendra pradhan) से मिले थे, जिसकी खबर के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव (sp chief akhilesh yadav) ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी थी. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दोनों दलों के बीच दरार सतह पर आ गई व दोनों पार्टियों के बीच अलगाव तय हो गया. एमएलसी चुनाव में हिस्सेदारी न मिलने से नाराज ओपी राजभर ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बगावत कर दी थी. इस दौरान ओम प्रकाश राजभर लगातार अखिलेश यादव को नसीहत देने में लगे हुए थे और उन्हें एसी से निकलकर बाहर राजनीति करने को कह रहे थे.

विपक्षी एकता के बीच बीजेपी के लिए मजबूती

अभी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ पूरा विपक्ष लामबंद हो रहा है. ऐसे में सुभासपा का बीजेपी के साथ आना बीजेपी के लिए मजबूती साबित हो सकता है. दूसरी तरफ जयंत चौधरी (jayant chaudhary) भी बीजेपी के साथ आ जाते हैं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे मजबूती मिलेगी. क्योंकि राष्ट्रीय लोकदल (rashtriya lokdal)  का पश्चिमी यूपी में अच्छा प्रभाव माना जाता है.

पिछड़ों में गैर यादव बिरादरी का कितना है वोट शेयर?

सपा अपनी सियासत को पिछड़ों के सहारे ही साधती रही है लेकिन बीते तीन चुनावों में पिछडों में भी गैर यादव बिरादरी का सपा से नाता कमजोर हुआ है. यूपी में तकरीबन कुर्मी पटेल 7 फीसदी, मौर्या कुशवाह शाक्य सैनी 6 फीसदी, लोध 4, गड़रिया पाल 3 फीसदी, निषाद मल्लाह बिंद कश्यप 4 फीसदी, तेली साहू जायसवाल 4, जाट 3, कुम्हार प्रजापति चौहान 3 फीसदी, कहार नाई चौरसिया 3 फीसदी, गुर्जर 2 फीसदी और 2 से 3 फीसदी राजभर वोट बैंक है.


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Yogi Aditya Nath

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