सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने मंगलवार को लोकसभा (Lok Sabha) की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. वो आजमगढ़ (Azamgarh) से सांसद थे. अब उनके पास सिर्फ मैनपुरी (Mainpuri) के करहल (karhal) विधानसभा सीट से विधायकी का पद बचा है.
अखिलेश ने सांसदी कुर्बान कर स्पष्ट संदेश दिया है कि वो अब प्रदेश की राजनीति को ही तवज्जो देंगे. चुनाव में जिस जोर शोर से अखिलेश ने योगी सरकार (Yogi Government) पर हल्ला बोला था, वो तेवर अब विधानसभा में सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है. इसकी वजह है समाजवादी पार्टी का संख्या बल.
पिछले 15 सालों में कोई पार्टी पहली बार विपक्ष के तौर पर मजबूती से उभरी है. इससे पहले हुए दोनों चुनावों में मुख्य विपक्षी पार्टी 100 सीट नहीं जीत पाई थी. साल 2012 में बसपा (BSP) 80 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी. वहीं 2007 के चुनाव की बात करें तो सपा(SP) 97 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी.
सपा को इस बार 111 सीटें मिली हैं और उसके वोट शेयर में बड़ा इजाफा हुआ है . यूपी में विपक्ष के नाम पर समाजवादी पार्टी ही दिख रही है. मायावती (Mayawati) की बीएसपी (BSP) 1 और कांग्रेस (Congress) 2 सीटों पर सिमट गई है. पांच साल पहले सपा विपक्ष के तौर उतनी मजबूत नहीं थी. साल 2017 में उसके पास 47 सीटें थी. अखिलेश जानते हैं कि साल 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए में अगर पार्टी को यूपी (Uttar Pradesh) में दोबारा सरकार बनानी है तो उनका यूपी में रहना बहुत जरूरी है.
सांसदी छोड़ने के बाद यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर अखिलेश योगी सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना कर सकते हैं, इसके अलावा यूपी में रहने से उनको अपने कार्यकर्ताओं को संगठित करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा कार्यकर्ताओं में संदेश जाएगा कि यूपी चुनाव में हार से पार्टी का मनोबल नहीं गिरा है. अगले 5 सालों तक अखिलेश विधानसभा से लेकर सड़क तक योगी सरकार के खिलाफ हुंकार भर सकते हैं. अब ये वक्त बताएगा कि अखिलेश का ये फैसला जमीन पर कितना असर करता है.