अगर आपसे कोई पूछे कि वो कौन सा आंदोलन था जिसने अंग्रेजों को भारत की सत्ता छोड़ने की बात सोचने पर मजबूर कर दिया था तो आपमें से ज्यादातर का जवाब होगा- Quit India Movement यानी भारत छोड़ो आंदोलन...लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि असल में ये स्लोगन किसने दिया था...इतिहासकारों और जानकारों के मुताबिक ये स्लोगन दिया था- कांग्रेस नेता यूसुफ मेहर अली (Yusuf Meherally) ने...ये वही मेहर अली थे जो साल 1942 में तब की बंबई के मेयर थे...
आजादी के आंदोलन में 8 बार जेल जाने वाले यूसुफ राष्ट्रपिता गांधी (Mahatma Gandhi) के करीबियों में शुमार थे...भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने से कुछ वक्त पहले ही बापू से मिलकर उन्होंने इस स्लोगन की चर्चा की थी...मेहर अली को अपने इस स्लोगन पर इतना भरोसा था कि उन्होंने महात्मा गांधी के हामी भरने से पहले ही इसके पर्चे भी छपवा लिए थे...बहरहाल, गांधीजी को भी ये नारा हालात के माकूल लगा और उन्होंने बंबई के अगस्त क्रांति मैदान से इसी नारे के साथ आंदोलन का ऐलान कर दिया.
ये भी देखें- Third Battle of Panipat: सदाशिव राव की एक 'गलती' से मराठे हार गए थे पानीपत की जंग
आज की तारीख का संबंध भारत छोड़ो आंदोलन से है क्योंकि जब गांधी जी ने इसका ऐलान किया था तो तारीख थी-8 अगस्त 1942. ये एक ऐसा आंदोलन था जिसने 1857 के बाद पहली बार पूरे देश को न सिर्फ एकजुट कर दिया बल्कि अंग्रेजी राज के खात्मे की जमीन भी तैयार कर दी.
बात साल 1942 के आठ अगस्त की है. मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (Gowalia Tank Maidan) के ऊपर बादल छाया हुआ था लेकिन मौसम खुशगवार बना हुआ था...मैदान के कोने में एक मंच बना था और मंच पर बैठे थे गांधी समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेता और उनके सामने मौजूद थी अपार भीड़. सभी को एहसास था- कुछ बड़ा होने वाला है. ऐसे माहौल में महात्मा गांधी ने मंच से कहा- एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूं.
इसे आप अपने दिल में बैठा लें और अपनी हर सांस में उसे याद रखें. यह मंत्र है- ‘करो या मरो’. अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे. गांधी के इस ऐलान के साथ ही देश भर में आंदोलन का बिगुल फूंक गया. तब दो ही नारे हर भारतवासी की जुबान पर थे...अंग्रेजो भारत छोड़ो और करो या मरो.
गांधी के इस ऐलान का अंग्रेजों में इतना डर था कि उसी दिन आधी रात को ब्रिटिश सरकार ने ऑपरेशन जीरो ऑवर (Operation Zero Hour) शुरू कर दिया. गांधीजी को पुणे के आगा खां पैलेस में रखा गया तो कांग्रेस के दूसरे तमाम बड़े नेताओं को अहमदनगर दुर्ग में रखा गया. देशभर में जहां भी कांग्रेस का कोई नामचीन नेता अंग्रेजी सरकार को दिखा उसे जेल में डाल दिया गया. ऐसा कर अंग्रेज बहादुर को ऐसा लगा कि वे इस आंदोलन को दबा देंगे पर वे गलत थे.
अगले ही दिन 33 साल की एक बहादुर महिला अरुणा आसफ अली ने उसी ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहरा कर अंग्रेजों को ललकारा. उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि तब न सिर्फ तिरंगे झंडे पर बैन लगा दिया गया था बल्कि कांग्रेस की मान्यता भी खत्म कर दी गई थी. बाद उसी अरुणा आसफ अली को क्वीन ऑफ अगस्त क्रांति कहा गया. आजादी के बाद 1958 वे दिल्ली की पहली महिला मेयर बनीं.
इसी बीच एक दिलचस्प वाक्या हुआ. 9 अगस्त 1942 की शाम कांग्रेस के कुछ युवा समर्थकों ने बॉम्बे में बैठक की. इन लोगों का विचार था कि भारत छोड़ो आंदोलन की आग मद्धिम न पड़ने पाए, इसके लिए कुछ कदम उठाने जरूरी थे. इस बैठक में रेडियो की समझ रखने वाले उषा मेहता जैसे युवा भी थे. फैसला हुआ कि आंदोलनकारी रेडियो की अपनी एक सीक्रेट सर्विस शुरू करेंगे. अंग्रेजों के खिलाफ खुफिया रेडियो सर्विस शुरू करने वालों में उषा मेहता के साथ थे बाबूभाई ठक्कर, विट्ठलदास झवेरी और नरीमन अबराबाद प्रिंटर.
ये भी देखें- Lala Amarnath: पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकता था ये भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
प्रिंटर इंग्लैंड से रेडियो की टेकनोलॉजी सीखकर आए थे. उषा मेहता खुफिया रेडियो सर्विस की एनआउंसर बनाई गईं. इस तरह से अंग्रेजों के खिलाफ सीक्रेट रेडियो सर्विस कांग्रेस रेडियो की शुरुआत हुई. 14 अगस्त 1942 को उषा मेहता ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक खुफिया ठिकाने पर कांग्रेस रेडियो की स्थापना की. इस खुफिया रेडियो सर्विस का पहला प्रसारण 27 अगस्त 1942 को हुआ. पहले प्रसारण में उषा मेहता ने धीमी आवाज में रेडियो पर घोषणा की- ये कांग्रेस रेडियो की सेवा है, जो 42.34 मीटर पर भारत के किसी हिस्से से प्रसारित की जा रही है.
बाद में कांग्रेस रेडियो के साथ डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युतराव पटवर्धन और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे सीनियर नेता भी जुड़ गए. कांग्रेस रेडियो के जरिए महात्मा गांधी और कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के भाषण प्रसारित किए जाते. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद खुफिया कांग्रेस रेडियो सेवा को ज्यादा दिनों तक नहीं चलाया जा सका. 12 नवंबर 1942 को ब्रिटिश हुकूमत ने उषा मेहता समेत इसे चलाने वाले सारे लोगों को गिरफ्तार कर लिया.
बहरहाल, जब कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तो एक ऐसी अनूठी बात भी सामने आई जिसके बारे में शायद ही किसी अंग्रेज अधिकारी ने सोचा होगा. 9 अगस्त की सुबह जनता ने आंदोलन की बागडोर स्वयं अपने हाथों में ले ली. गुस्साई जनता ने देश के कई इलाकों में रेलवे लाइनों को क्षतिग्रस्त कर दिया, टेलीफोन के तार काट दिए, बैंकों को लूट लिया.
इसके अलावा सरकारी भवनों और पुलिस थानों में आग लगा दी गई. कई जगहों पर अंग्रेजी सैनिकों से झड़प के बाद समानांतर सरकारें बनाई गईं. जिसमें यूपी का बलिया, महाराष्ट्र का सतारा, पश्चिम बंगाल का तमलुक और उड़ीसा का तलचर इलाका शामिल है. पहली अस्थायी सरकार बलिया में चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी थी. वर्ष 1942 के अंत तक लगभग 60,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया और कई हज़ार लोग मारे गए जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. बंगाल के तमलुक में 73 वर्षीय मतंगिनी हाजरा, असम के गोहपुर में 13 वर्षीय कनकलता बरुआ, बिहार के पटना में सात युवा छात्र व सैकड़ों लोग प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से मारे गए.
चलते-चलते आज के दिन हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी नजर डाल लेते हैं
1509: विजय नगर सम्राज्य के सम्राट के रूप में महाराज कृष्णदेव राय की ताजपोशी
1919: ब्रिटेन ने अफगानिस्तान की आजादी को मंजूरी दी
1990: इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर कब्जे का किया ऐलान
2004: इटली ने क्वात्रोची को भारत को सौंपने से किया इनकार