Amra Ram: सीकर में इंडिया गठबंधन से प्रत्याशी और कॉमरेड नेता अमरा राम ने 72,896 वोटों से जीत हासिल की है. उन्होंने इस सीट पर भाजपा के प्रत्याशी और दो बार के सांसद सुमेधानंद सरस्वती को हराया.सीकर सीट पर अमरा राम के लिए ये सफर आसान नहीं रहा.
सरपंच से लेकर सांसद तक का रास्ता तय करने में उन्हें 20 साल से ज्यादा का समय लग गया. अमरा राम सियासी जमीन पर कब उतरे और ये सफर कैसे तय किया, आइये जानते हैं.
5 अगस्त, 1955 को सीकर के मुंडवाड़ा में जन्मे अमरा राम मार्क्सवादी विचारधारा से काफी प्रेरित हैं. गरीबी और मुफलिसी में जीवन बिताने वाले अमरा ने छात्र जीवन से ही कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र विंग SFI का झंडा उठा लिया था. उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत होती है साल 1979 में, जब उन्होंने सीकर के एसके कॉलेज से छात्रसंघ का चुनाव जीता. इसके बाद छात्र राजनीति से बाहर निकलते ही वे गांव के सरपंच बन गए. अमरा राम 1981 में पहली बार सरपंच बने.
शेखावाटी में अमरा राम को हर कोई जानता है. लोग बताते हैं कि अमरा राम ने शुरू से ही हर किसी की मदद की, फिर चाहे वो किसान, छात्र हो या नौजवान...कोई भी आंदोलन होता है तो उन्हें जरूरत याद किया जाता है.
एक किस्सा है साल 2017 का, जब राजस्थान में किसान आंदोलन हुए, तब अमरा राम ने किसानों का साथ दिया और आंदोलन की धरती पर उतरकर सिर्फ 13 दिनों के अंदर ही अपनी मांगे मनवा ली थीं. नतीजा ये रहा कि राजस्थान के किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ हो गया.
इसके बाद अमरा राम इलाके में किसानों के हकों के लिए लड़ने लगे. उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी हाथ आजमाया, लेकिन जीत नहीं पाए. हालांकि, 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में अमरा राम की धोद से जीत हुई. फिर धोद व दांतारामगढ़ से अमरा चार बार विधायक रहे. अमराराम माकपा के राज्य सचिव होने के साथ ही अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी है.
अमरा राम की बेदाग छवि उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई. स्टूडेंट रहते हुए उन्होंने SFI ज्वॉइन की थी तो 68 साल के अमरा की पॉपुलैरिटी युवाओं में भी काफी है. बताया जाता है कि शेखावाटी के कॉलेजों में SFI की धाक है और कम्युनिस्ट विचारधारा के छात्र अमरा को यहां आइडियल माने जाते हैं.
तभी तो राजस्थान में बीते विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी सीकर में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. बावजूद इसके कांग्रेस ने इस सीट पर CPIM से गठबंधन किया और बेदाग छवि वाले अमरा राम पर भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा.
दरअसल, 1994 में विधायक बनने के बाद अमरा राम बस से जयपुर पहुंचे थे. फिर वे ऑटो लेकर विधानसभा गए. जैसे ही वे विधानसभा के गेट पर पहुंचे तो गार्ड्स ने उन्हें वहीं रोक लिया. उनके लिए यह मानना कठिन था कि बगैर गाड़ी के भी कोई विधायक विधानसभा आ सकता है. जब अमरा राम ने जीत का सर्टिफिकेट दिखाया, तब उन्हें अंदर जाने दिया गया.
सीकर के सरपंच का सांसद तक का सफर सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि वहां के किसानों के लिए बड़ी जीत है.
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