Rani Padmini and Siege of Chittorgarh: 14वीं शताब्दी को भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के लिए याद किया जाता है. 1303 में ही अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khalji) ने चित्तौड़ के किले में प्रवेश किया था. अलाउद्दीन ने बप्पा रावल के गुहिलौत वंश के आखिरी शासक और रावल समरसिंह के बेटे रावल रतन सिंह (Rawal Ratnasimha) को हराया था. झरोखा के इस लेख में हम जानेंगे रानी पद्मिनी (Rani Padmini) की कहानी को और चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी की चढ़ाई (Siege of Chittorgarh 1303) के दर्द भरे अतीत को भी.
साल 1302... महाराणा रतन सिंह चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठे थे... राजमहल में आए राजकीय अतिथि की मेहमाननवाजी की जा रही थी... मनोरंजन के लिए मशहूर जादूगर पंडित राघव चेतन (Pandit Raghav Chetan) को आमंत्रित किया गया था. जादूगर ने डंडे के करतब दिखाने शुरू किए... उसने दावा किया कि अगला करतब डंडा ही गायब कर देगा... लेकिन ये क्या डंडा हाथ से फिसला और मेहमान के सिर पर जा गिरा... राजमहल में हाहाकार मच गया. एक गलती से हुए मेहमान के अपमान के इस वाकये ने अगले कुछ महीनों बाद चित्तौड़ का इतिहास बदल दिया.
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आज हम जानेंगे चित्तौड़गढ़ पर अलाउद्दीन के कब्जे की दास्तां को... क्योंकि आज के दिन का संबंध इस घटना से है...
अतिथि को चोट लगी और सिर में सूजन उभर आई... जादूगर को पकड़ लिया गया... महाराणा के चरणों में गिरकर वह गिड़गिड़ाया... लेकिन रतन सिंह के गुस्से का ठिकाना न था... अतिथि को चोट उनके सम्मान पर चोट थी... अतः महाराणा रतनसिंह ने उसे पैरों से मारकर चित्तौड़ से बाहर जाने का आदेश दे दिया.
राघव चेतन वहां से चला तो गया लेकिन उसने मन में ठान लिया था कि वह इस अपमान का बदला लेकर रहेगा... उसने चित्तौड़ की शान को धूल में मिलाने की कदम खा ली थी..
वह अलाउद्दीन खिलजी से जा मिला. और उसके सामने महारानी पद्मिनी (Rani Padmini) की तारीफ भी कर डाली... बदले की आग में जलते पंडित ने बादशाह को चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए तैयार कर लिया.
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली से एक पत्र अपने दूत के हाथ चित्तौड़ भेजा.
"राजा रतनसिंह!
अपनी सुंदर पत्नी को पत्र मिलते ही बादशाह आलम खिलजी के महल में भेंट कर दो, अन्यथा चित्तौड़ को मिट्टी में मिला दिया जाएगा..."
पत्र पढ़कर राजपूत सरदारों की आंखें अंगार बरसाने लगी. दिल्ली की सेना विशाल थी... फैसले में देरी हुई, तभी दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन का एक और संदेशवाहक चित्तौड़ पहुंचा. गोरा ने ये पत्र पढ़ा, जिसमें लिखा था-
"ऐ सिसोदिया वंश के कुलदीपक महाराणा रतनसिंह! क्यों न हम दोस्त बन जाएं. पहले ही अनेक युद्धों में मैं अपनी फौज बर्बाद कर चुका हूं. मुझे दुश्मन की जगह दोस्ता का दर्जा दें. आगे उसने लिखा कि मैं आपकी नाजनीन बेगम का दीदार चाहता हूं.दोस्ती की उम्मीद में- अलाउद्दीन खिलजी"
युद्ध टालने के लिए संदेशवाहक को दोस्ती की मंजूरी दे दी गई...
अगले ही दिन अलाउद्दीन चार सवारों के साथ आ गया... मुख्य द्वार पर स्वागत हुआ... फिर दरबार ले जाया गया... दरबार में महाराणा और खिलजी की ऐतिहासिक भेंट हुई. महाराणा की ओर से दावत दी गई. सभी सभासद और बादशाह के 4 साथी दावत में थे. दावत के बाद खिलजी ने फिर महाराज से रानी के दीदार की गुजारिश की.
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महाराज ने कहा- अगली बार रानी हाथ से परोसकर खाना खिलाएगी. फिर मिन्नतें करने पर गोरा ने एक बड़ा शीशा द्वार के पास रखवा दिया. महाराणा और खिलजी द्वार तक गए, शीशे में महारानी का प्रतिबिंब दिखाकर राणा ने कहा- लो देख लो...
ये ही हैं महारानी पद्मिनी. खिलजी के पांव मानों जमा हो गए. अब महाराणा ने खिलजी को विदा करने की नीयत से कुछ बातचीत शुरू की... खिलजी बोला- जाने को जी तो नहीं चाहता लेकिन जाना तो पड़ेगा ही.
खिलजी के चारों साथी चले गए और दोस्ती के रंग में रंगे महाराणा किले के बाहर तक उसे विदा करने आए. बाहर धोखे से महाराणा को बंदी बना लिया गया. हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेड़ियां डालकर एक तंबू में बंद कर दिया गया. अब खिलजी ने रानी पद्मिनी के नाम एक पत्र भेजा. इसमें लिखा था- या तो पद्मिनी स्वंय श्रृंगार करके खिलजी की सेवा में आ जाए, या चित्तौड़ को खत्म होते देखें... राजा रतनसिंह को जनता के सामने कत्ल कर दिया जाएगा.
ऐसा संदेश दोबारा दरबार पहुंचा... पद्मिनी ने समस्या सरदारों के सामने रखी... सारा दरबार मौन हो गया... सब मानों सर्वनाश की घड़ियां गिन रहे हों... अब मौत निश्चित थी लेकिन बस ये तय करना था कि मृत्यु का मार्ग क्या होगा... रानी पद्मिनी के रिश्ते के भाई थे गोरा और उनके भतीजे का नाम था बादल.
बादल ने सबको चुप देखा तो एक विचार कह डाला... उसने कहा, बादशाह को संदेश भेज दिया जाए कि रानी पद्मिनी आ रही है. इतनी बात सुनते ही बादल के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ पड़ा... थप्पड़ मारा था गोरा ने. गोरा ने कहा- ऐसी बात कहने से पहले तुम्हारी जीभ कट क्यों नहीं गई. पद्मिनी तुम्हारी बुआ हैं. मेवाड़ की आन हैं, मर्यादा हैं.
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बादल ने थप्पड़ की चोट सहन करते हुए कहा- मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए... संदेश भेजने के बाद 700 डोले सजाएं. हर डोले में एक शस्त्रों की पोटली और एक वीर सैनिक बिठाया जाए. मेरे पास शस्त्र भी हो और छेनी हथौड़ी भी रखो. राजा से मिलने के बहाने मैं उनकी हथकड़ी काट दूंगा. फिर खिलजी सेना पर हल्ला बोल दिया जाए. बात पूरी होते होते सबकी बांछे खिल गई. बात सबकों पसंद आई.
खिलजी को जैसे ही ये संदेश मिला कि रानी पद्मिनी उनके पास आने को तैयार हो चुकी हैं, सभी डेरों में जश्न की तैयारी कर दी गई.
इधर 700 डोले सजाए गए. सबमें शस्त्र रख दिए गए. एक सैनिक अंदर बैठा व चार सैनिक डोला उठानेवाले कहार बन गए. योजना के मुताबिक, बादल पद्मिनी की जगह श्रृंगार करके विशेष डोले में बैठ गया. जैसे जैसे डोले खिलजी की सेना के डेरे के पास पहुंचे, जश्न शुरू हो गया. खिलजी को पद्मिनी के आने की जानकारी मिली तो वह शराब के प्याले पर प्याले चढ़ाने लगा.
खिलजी के सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि पद्मिनी अब डेरे में पहुंचने वाली है. पालकी उस तरफ मुड़ रही है, जिस तरफ राजा रतनसिंह कैद हैं. खिलजी बोला- वाह... इसी बात पर एक प्याला तुम भी पियो... रक्षक ने बादशाह के हुक्म की तामील की और प्याला गटक गया. वाह वाह करते खिलजी पलंग पर गिरा... वह मदहोश था, बेहोश हो गया. सुरक्षाकर्मी ने उसे खींचकर पलंग पर ठीक से लिटा दिया.
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बादल पद्मिनी का श्रृंगार किए राजा रतनसिंह के डेरे में पहुंचा. बाहर खड़े रक्षाकर्मी ने कहा- डोले का पर्दा खोला, कौन है? कहार सैनिक बोला- महारानी का पर्दा खोलने का तुम्हें अधिकार नहीं. पीछे हटो. तब तक रक्षक जरा सा पर्दा हटाकर झांक चुका था. स्त्री वस्त्रों की झलक देखकर पीछे हट गया. उसे लगा कि रानी पद्मिनी ही हैं. डोला डेरे के भीतर गया. राजा तभी से चकित और क्रोधित थे, जब से उन्होंने पद्मिनी के आने का समाचार सुना था. लेकिन बादल को देखते ही वह शांत हो गए. बादल ने तुरंत उनकी हथकड़ी काट दी. पैरों की बेड़ियां काट दीं.
राणा रतनसिंह को उनकी तलवार भी सौंप दी. अब तो राणा ने सबसे पहले बाहर खड़े रक्षकों को मार डाला, फिर बादल के संकेत देते ही, 300 डोलों के सैनिकों ने शस्त्र संभाल लिए. खिलजी के सैनिक जश्न मना रहे थे. कुछ खा रहे थे, कुछ पी रहे थे. कुछ सोनेवाले थे, कुछ सो रहे थे.
राजपूत सैनिकों को भी नहीं पता कि किसने कितने मारे... ऐसा हल्ला मचा कि किसी को समझ ही नहीं आया. राणा रतनसिंह और बादल के नेतृत्व में राजपूत सैनिक शत्रुओं को काटते हुए आगे बढ़ रहे थे.
दूसरी ओर के 400 डोले, जो पीछे रह गए थे. वे योजनापूर्वक खिलजी के डेरे के पिछली ओर पहुंच गए थे. संकेत पाकर उन्होंने भी पीछे से आक्रमण कर दिया. उनका नेतृत्व कर रहा था वीर गोरा... उस वक्त वहां मौजूद खिलजी की आधी से ज्यादा फौज तो मारी जा चुकी थी. हर हर महादेव के नारे लग रहे थे. रक्षक सिपाहियों ने किसी तरह खिलजी को घोड़े पर लादा और बचा ले गए...
राजपूत सैनिकों को भी नुकसान हुआ था... बहुत सारे मारे गए थे.. सवेरा होने तक जो बचे, सब चित्तौड़ आ गए... अब उत्सव की बारी थी ... सब ओर दीपमालाएं और फूल मालाएं सज रही थीं... पर कोई नृत्य नहीं हो रहा था... कोई चहल पहल नहीं थी... गोरा को भी इस लडाई में वीरगति प्राप्त हुई थी. अब बलिदानी सैनिकों का परिवार आखिर कैसे जश्न मनाता!
जंग अभी और भयावह होनी थी... और उससे भी भयानक था जौहर का दर्द... महाराजा रतन सिंह को इसके बाद हुई लड़ाई में वीरगति प्राप्त हुई. 28 जनवरी 1303 को चित्तौड़ पर चढ़ाई करने वाले खिलजी ने जीत के बाद 26 अगस्त 1303 को किले में प्रवेश किया.
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अपनी जीत के बाद, अलाउद्दीन ने चित्तौड़ की आबादी को कत्ल करने का फरमान सुनाया था... अमीर खुसरो ने लिखा है- आदेश के बाद 30,000 हिंदुओं को काट डाला गया.. वहीं, बनारसी प्रसाद सक्सेना ने लिखा है कि 30,000 का आंकड़ा एक अतिशयोक्ति होगी क्योंकि फारसी इतिहास में 3 और 30 को एक तरह से पेश किया जाता है.
उधर, किले पर हमले के बाद राजपूत महिलाओं ने जौहर किया, जबकि ज्यादातर योद्धा किले की रक्षा करते हुए मारे गए. जौहर कहां हुआ, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतिहासकार आर वी सोमानी ने अनुमान लगाया कि यह गौमुख कुंड के पास या महलों के अंदर हुआ था...
जब जब चित्तौड़ पर खिलजी की जीत का जिक्र होगा... युद्ध थोपने, एक सल्तनत को अपनी ताकत के बल पर खत्म करने और महिला के सम्मान पर चोट करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी को दुनिया दोषी की नजर से ही देखेगी... और इसमें एक खलनायक पंडित राघव चेतन भी होगा...
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
683 – यज़ीद I की सेना ने अल-हर्राह (Battle of al-Harra) की लड़ाई में मदीना के 11,000 लोगों को मार डाला.
1833 – काठमांडू-बिहार भूकंप की वजह से 500 लोगों की मौत हुई.
1891 – भारतीय लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री (Acharya Chatursen Shastri) का जन्म हुआ.
1910 – नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा (Mother Teresa) का जन्म हुआ.
1928 – हीरो साइकिल के सह संस्थापक ओम प्रकाश मुंजाल (Om Prakash Munjal) का जन्म हुआ.