साल 1659 में बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मारने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने 'बाघ नख' का इस्तेमाल किया था. यह विशेष हथियार महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार की पहल भारत लौट रहा है. कई दशकों से ये 'बाघ नख' लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में रखा हुआ है. यूनाइटेड किंगडम के अधिकारियों ने 'बाघ नख' लौटाने पर अब सहमति दे दी है.
इसके लिए सांस्कृतिक मामलों के मंत्री, विभाग प्रमुख सचिव, निदेशक, पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के प्रतिनिधिमंडल ने लंदन में विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय और अन्य संग्रहालयों का दौरा किया था. वहां पर इस मामले में एक समझौता किया गया था.
क्या होता है 'बाघ नख'
छत्रपति शिवाजी महाराज के 'बाघ नख' को इतिहास का अमूल्य खजाना माना जाता है और इससे राज्य के लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं. ये हथियार बाघ के पंजे के डिजाइन में बना हुआ है. यह पूरी तरह मुट्ठी में फिट हो सकता है. यह स्टील से तैयार किया जाता है, जिसमें चार नुकीली छड़ें होती हैं, जो किसी बाघ के पंजे से भी घातक हैं.
इसके दोनों तरफ दो रिंग होती है, जिससे हाथ की पहली और चौथी उंगली में पहनकर इसे ठीक तरह से मुट्ठी में फिट किया जा सके. यह इतना घातक होता है कि एक ही वार में किसी को भी मौत के घाट उतार सकता है.
इतिहासकारों की मानें तो बाघ के पंजों की तरह दिखने वाला खंजर खास तौर से पहली बार शिवाजी के लिए ही तैयार कराया गया था, ताकि ये उनकी मुट्ठी में ठीक तरह से फिट हो सके. यह एक ही झटके में दुश्मन को चीर सकता है.
अंग्रेज अपने साथ ले गए थे
शिवाजी महाराज का 'बाघ नख' मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में था. अंग्रेजों के भारत आने के बाद मराठा पेशवा के प्रधानमंत्री ने 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स ग्रांट डफ को भेंट किया था. सन् 1824 में डफ वापस इंग्लैंड वापस गए और अपने साथ बाघ नख को भी ले गए. बाद में उन्होंने इसे लंदन की विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम को दान कर दिया था.