Story of India: भारत बने, उसके लिए जरूरी था कि उसे खड़े करने वाले स्तंभ तैयार किए जाएं... देश की आजादी के तुरंत बाद भारत में बुनियादी ढांचे के विकास से लेकर ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा क्षेत्र की जरूरतों पर ध्यान दिया गया... भविष्य को बेहतर बनाने के इरादे से 1948 में एटॉमिक एनर्जी कमिशन (Atomic Energy Commission of India) बनाया गया... इसके सालों बाद भारत में एक वेल प्लांड शहर चंडीगढ़ (Chandigarh City) बनाने की शुरुआत की गई, 1953 में एयर इंडिया (Air India) की स्थापना की गई... इसी दौरान तिलैया बांध (Tilaiya Dam) और बोकारो पावर स्टेशन (Bokaro Thermal Power Station-BTPS) बनकर तैयार होते हैं.
1954 में भारत में पेनसिलिन का उत्पादन (Penicillin Production in India) शरू हुआ.. 1959 में भारत की पहली गगनचुंबी इमारत चेन्नई में बनकर तैयार हुई, ये LIC Building थी... 1955 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State bank of India) का गठन किया गया... 1955 में पहला अखबारी कागज कारखाना नेपानगर (Nepanagar Newsprint Factory), मध्य प्रदेश में बनकर तैयार हुआ... बेंगलुरू में हिंदुस्तान मशीन टूल्स - Hindustan Machine Tools (एचएमटी) कारखाने का उद्घाटन किया गया... 1956 में ही भारत का पहला फाइव स्टार होटल, अशोका होटल (Ashoka Hotel) बनकर तैयार हुआ...86 लाख की लागत से विज्ञान भवन (Vigyan Bhawan) बनकर तैयार हुआ... 1958 में हिंदुस्तान एल्युमिनियन (Hindustan Aluminium) स्थापित किया गया... 1958 में ही सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग (Supreme Court Building) तैयार की गई.. 1958 में डीआरडीओ (DRDO) बनाया गया...
ये सब हुआ लेकिन सबसे अहम था देश की एजुकेशन और हेल्थ को मजबूत बनाना... बिना इंजीनियरों और मैनेजमेंट प्रोफेश्नलों के, बनते भारत को कौन संभालता.. इसे बनाता कौन...? भारत जब आजाद हुआ तब देश में सिर्फ 1200 सिविल इंजीनियर्स थे. देश की आबादी स्वस्थ भी रहे और शिक्षित भी बने... इसी सोच ने जन्म दिया आईआईटी (IIT), आईआईएम (IIM), एम्स (AIIMS) और यूजीसी (UGC) जैसे अहम संस्थानों को... इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भारत को खड़ा किया... 1951 में पहला आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) बनाया गया. 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग - University Grants Commissio (यूजीसी) बनाया गया.
देश में आईआईटी की स्थापना एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर की गई थी. 1961 में संसद ने आईआईटी ऐक्ट (IIT Act) पास किया. हालांकि तब तक देश में 5 आईआईटी बनकर तैयार हो चुके थे और पूरी तरह से कार्य कर रहे थे.
आजादी के बाद 1950 के दशक में पहला आईआईटी पश्चिम बंगाल में बनाया गया था. ये वह दौर था जब राष्ट्र एक और बड़ी चुनौती से जूझ रहा था. भारत को आजादी ऐसे दौर में मिली जब पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की विनाशलीला झेल रही थी. भारत को ऐसे शिक्षण संस्थान की जरूरत थी जो इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट और ग्रोथ की ओर देश को बढ़ा सके.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस जगह आईआईटी खड़गपुर को बनाया गया है, वह कभी एक जेल थी. पश्चिम बंगाल का हिजली डिटेंशन कैंप (Hijli Detention Camp) 1930 में बनाया गया था. मकसद एक ही था, स्वतंत्रता सेनानियों को इसमें बंधक बनाकर रखा जा सके.
आजादी के बाद, जब भारत अपना पहला वर्ल्ड क्लास टेक्निकल इंस्टिट्यूट खोलने के लिए तैयार था तब जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने हिजली को पश्चिम बंगाल के तब के मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय (Bidhan Chandra Roy) की सलाह पर साइट के तौर पर चुना. इससे पहले, इंस्टिट्यूट कुछ दिन तक कलकत्ता से चला था. हिजली में एक नया कैंपस खोला गया और जेल को म्यूजियम में बदल दिया गया.
1956 में आईआईटी खड़गपुर के पहले कॉन्वोकेशन में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने अपने संबोधन में कहा था- यहां भारत का भविष्य बन रहा है... यह तस्वीर भारत में हो रहे बदलावों का चेहरा है... आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur), पहला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी था जिसे आजादी के बाद बनाया गया और इसके मानदंड बेहद ऊंचे थे. इसे अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology) की तर्ज पर तैयार किया गया था... सरकार की योजना था कि पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों में आईआईटी खोले जाएं ताकि रीजनल इंबैलेंस न रहे. इसलिए शुरुआती आईआईटी बॉम्बे, मद्रास, कानपुर और दिल्ली में खोले गए. आज देश में 23 आईआईटी हैं...
रुड़की में साल 1847 में स्थापित थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज (Thomason College of Civil Engineering) को 2001 में एक IIT के तौर पर बदल दिया गया और तबसे इसे IIT रुड़की के रूप में जाना जाता है. यह देश का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज है. आईआईटी रुड़की (IIT Roorkee) के कई अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ कॉलेबोरेशंस हैं. 50 से अधिक देशों के छात्र हर साल यहां प्रवेश लेते हैं.
भारत में IIT छात्रों के पहले बैच में सिर्फ लड़के थे. ये सभी अपनी यूनिवर्सिटीज के टॉप रैंकर्स थे.
IIT को हर साल 100-200 मिलियन का ग्रांट सरकार से मिलता है. अलमनाई और अकैडमिक फीस से भी इसे मदद मिलती है.
2005 में यूएस कांग्रेस ने IITians के योगदान को सराहा था. इसे लेकर एक हाउस रिजॉल्यूशन भी पास किया गया.
IIT बॉम्बे की स्थापना UNESCO और पूर्व सोवियत यूनियन की मदद से की गई थी.
IIT रुड़की के बारे में कहा जाता है कि यहां की इसकी इंटरनेट स्पीड देश में सबसे ज्यादा है. यह भारत की सामान्य इंटरनेट स्पीड से 6 गुना है.
IIT खड़गपुर वेटिकन सिटी और मोनैको से तिगुना बड़ा कैंपस है.
इस इंस्टिट्यूट में एक 'बाम्ब हाउस' नाम की जगह है जिसमें सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान अंग्रेज बम रखा करते थे. अभी इसका इस्तेमाल स्टाफ क्वार्टर के लिए होता है.
IIT की स्थापना के शुरुआती दौर में, इसमें दाखिले के लिए कोई प्रवेश परीक्षा नहीं होती थी. स्टूडेंट्स को स्कूल लेवल की परफॉर्मेंस और इंस्टिट्यूट में होने वाले इंटरव्यू के आधार पर दाखिला दिया जाता था.
IIM की स्थापना की पहल भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने योजना आयोग की सिफारिश पर की थी. IIM की स्थापना का अहम मकसद देश के मैनेजमेंट क्षेत्र में शिक्षा की क्वालिटी को बढ़ाना था.
IIM कलकत्ता और IIM अहमदाबाद, दोनों की स्थापना 1961 में हुई. IIM कलकत्ता की साझेदारी अल्फ्रेड पी स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (एमआईटी) और पश्चिम बंगाल सरकार व फोर्ड फाउंडेशन के साथ थी. IIM अहमदाबाद की शुरुआती दौर की साझेदारी हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के साथ थी.
IIM कलकत्ता की स्थापना 13 नवंबर 1961 को हुई थी. इसका कैंपस, कलकत्ता के बाहरी हिस्से में जोका में स्थित है. दूसरा IIM अहमदाबाद इसी साल 16 दिसंबर से शुरू हुआ था.
1972 में, रवि जे मथाई की अध्यक्षता में एक कमिटी ने सरकार को 2 और IIM बनाने का सुझाव दिया... कमिटी के सुझावों पर तीसरा IIM 1973 में बेंगलुरू में खुला.
1981 में, तीन मौजूदा IIM की प्रगति का पता लगाने और सरकार को सिफारिशें देने के लिए पहली IIM समीक्षा समिति बनाई गई. समिति ने कहा कि तीन IIM से हर साल लगभग 400 ग्रेजुएट निकल रहे थे और वे अपनी क्षमता तक पहुंच चुके थे. इस समिति ने देश में मैनेजमेंट प्रोफेश्नल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकार को दो और IIM खोलने का प्रस्ताव दिया. समिति ने ये भी सुझाव दिया कि मैनेजमेंट स्कूल में फैकल्टी की बढ़ती डिमांड को पूरा करने के लिए फैलोशिप प्रोग्राम को बढ़ाया जाए..
इसके बाद चौथा IIM लखनऊ में 1984 में खोला गया. लखनऊ में मेन कैंपस के अलावा IIM लखनऊ का एक और कैंपस नोएडा में भी है. इसके बाद 1996 में देश में 5वां IIM कोझिकोड में, छठा IIM इंदौर में खोला गया...
आज देश में कुल 20 IIM खोले जा चुके हैं.
भारत बन रहा था और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) देश को हर क्षेत्र में खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे... नेहरू का सपना यह था कि दक्षिण पूर्वी एशिया में मेडिकल और रिसर्च की रफ्तार बनाए रखने के लिए एक केंद्र होना चाहिए और इसके लिए उन्हें तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर (Amrit Kaur) का सहयोग मिला.
18 फरवरी 1956 के दिन देश की तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने लोकसभा में नया बिल पेश किया. जब वह बिल पेश कर रही थीं, उन्होंने कोई स्पीच तैयार नहीं की थी लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा, वह मिसाल बन गया.
उन्होंने कहा था, ‘मेरा हमेशा से सपना था कि देश में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई और मेडिकल एजुकेशन के उच्च स्तर को बरकरार रखने के लिए, एक ऐसे संस्थान की जरूरत है जो युवाओं को उनके ही देश में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद की पढ़ाई के लिए प्रेरित कर सके.’
इस बिल के पेश होने के एक साल पहले यानी सन् 1946 में एक भारतीय लोक सेवक, सर जोसेफ भोर, की अध्यक्षता में भारत सरकार की तरफ से हुए एक सर्वे में इस तरह के पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल इंस्टीट्यूट की सिफारिश की गई थी. जहां इस विचार को तो सराहा गया लेकिन इसके निर्माण में लगने वाली रकम की वजह से चिंताएं बढ़ गई थीं. राजकुमारी अमृत कौर को एम्स के लिए जरूरी फंड को इकट्ठा करने में पूरे 10 साल लग गए थे. न्यू जीलैंड ने एम्स के लिए दिल खोलकर दान दिया. मई 1956 में दोनों सदनों में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एक्ट को पास किया गया और इस तरह से एम्स की नींव पड़ी.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी सेना जापान में थी... यूएस आर्मी के साथ ही कृषि अनुसंधान सेवा के एस सिसिल सैल्मन भी वहीं मौजूद थे. जापान के पुनर्निर्माण पर अमेरिका का ध्यान था और सैल्मन का ध्यान वहां कृषि उपज पर था... उन्हें नोरिन नाम की गेहूं की एक ऐसी किस्म मिली जिसका दाना काफी बड़ा था... सैल्मन ने इसके और बेहतर नतीजे पाने के लिए इसे रिसर्च के लिए अमेरिका भेजा. 13 वर्ष तक रिसर्च के बाद 1959 में गेन्स नाम की किस्म तैयार करने में कामयाबी मिली
जापान में ये कोशिश चल रही थीं और उधर भारत में सन 1947 में आजादी से पहले बंगाल में भीषण अकाल पड़ा... इसमें बीस लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई.. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी थी. नेहरू ने तब कहा था,“बाकी सभी चीजों के लिए इंतजार किया जा सकता है, लेकिन कृषि के लिए नहीं...” तब देश की आबादी 30 करोड़ से कुछ ज्यादा ही थी...
1950 में धान वैज्ञानिक के. रमैया ने सुझाव दिया कि हमें जापान से लाई गई धान की किस्मों को अपनी देसी किस्मों के साथ मिलाना चाहिए, क्योंकि उस समय धान की जापानी किस्में प्रति हेक्टेयर 5 टन से भी ज्यादा पैदावार देती थीं, जबकि हमारी किस्मों की पैदावार एक से दो टन प्रति हेक्टेयर थी.
उस समय यह तकनीक कृषि के क्षेत्र में झटपट आई, इस तकनीक का इतनी तेजी से विकास हुआ कि इसने थोड़े ही समय में कृषि के क्षेत्र में हैरान करने वाले नतीजे दिए... जुलाई 1964 में जब सी. सुब्रह्मण्यम (C Subramaniam) देश के खाद्य एवं कृषि मंत्री बने तो उन्होंने सिंचाई और खनिज उर्वरकों के साथ-साथ ज्यादा पैदावार वाली किस्मों के विस्तार को अपना भरपूर समर्थन दिया... तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shashtri) ने गेहूं के बीजों के आयात की मंजूरी दी और इसे ‘समय की मांग’ करार दिया... इन सभी कोशिशों के चलते बौने गेहूं का क्षेत्र 1964 में महज 4 हेक्टेयर से बढ़कर 1970 में 40 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया... सन 1968 में हमारे किसानों ने रिकॉर्ड 170 लाख टन गेहूं का उत्पादन किया, जबकि इससे पहले सर्वाधिक 120 लाख टन उत्पादन 1964 में हुआ था.
गेहूं और धान की पैदावार में बढ़ोतरी के साथ-साथ हमारे वैज्ञानिकों ने रॉकफेलर फाउंडेशन के साथ मिलकर मक्का, ज्वार और बाजरे की संकर किस्में तैयार कीं, जिन्होंने इन फसलों की पैदावार और उत्पादन में बढ़ोतरी के नए रास्ते खोल दिए... अक्टूबर, 1968 में अमेरिका के विलियम गुआड ने खाद्य फसलों की पैदावार में हमारी इस क्रांतिकारी प्रगति को ‘हरित क्रांति’ का नाम दिया... भारत में हरित क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन को कहा गया. भारत के कृषि एवं खाद्य मन्त्री बाबू जगजीवन राम ने एम॰एस॰ स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों पर हरित क्रांति का सफल संचालन किया, जिसका भविष्य में सन्तोषजनक प्रभाव भी देखने को मिला...
1961 से 1985 तक के वर्षों में मुख्य फसलों की पैदावार दोगुनी से भी ज्यादा हो गईं.
वैश्विक स्तर पर अनाज की फसल में 160% की बढ़ोतरी हुई.
तीसरी दुनिया के लोगों की कैलोरी 25% बढ़ गई.
तीसरी दुनिया के देशों की जीडीपी 1960 से 2000 के बीच 15% बढ़ गई.
दुग्ध क्रांति के जनक रहे डॉ. वर्गीज कुरियन (Dr. Verghese Kurien)... अपनी पुस्तक एक अंतहीन स्वप्न में उन्होंने लिखा है- मैं संयोग से दूध बेचने वाला बन गया. उन्होंने एक अंग्रेज एक्सपर्ट को यह कहते सुना था कि लंदन के सीवर का पानी मुंबई के दूध से कहीं बेहतर है. यह वाक्य नौजवान कुरियन के लिए चुनौती जैसा था. उन्होंने 50 के दशक में गुजरात में अमूल की शुरुआत की.
कुरियन जिस एक अरब दूध के विचार को लेकर चले थे वह 1968 में पूरे साल एक विभाग से दूसरे विभाग का चक्कर लगाते लगाते, सरकारी फाइलों में दम तोड़ती नजर आने लगी थी लेकिन तभी एक कुदरती कृपा हुई.
कुरियन ने बताया था कि एक सुबह उनके दोस्त डीआईजी इमदाद अली ने उन्हें फोन किया और कहा कि कुरियन को उनकी मदद करनी होगी. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी आणंद आए हुए हैं. चूंकि अधिकारी के कार्यक्रम में कुछ वक्त रह गया था और इसे पूरा करने के लिए इमदाद अली चाहते थे कि वह उन्हें कुरियन की डेयरी लेकर आएं. डीआईजी इमदाद अली ने जब ये पूछा तो उन्होंने तुरंत हामी भर दी.. वह अधिकारी तब के गृह सचिव एल पी सिंह थे... वह अमूल के प्रयोग से प्रभावित हुए और पूछा कि इसे दूसरी जगह क्यों नहीं दोहराया जा सकता है. कुरियन ने पूछा कि क्या दिल्ली में कोई ऐसा है जो देश के लिए सकारात्मक बात चाहता है?
तमाम नौकरशाहों ने भले ही कुरियन की राह में बाधाएं खड़ी की हों, लेकिन यह एक ऐसे अधिकारी निकले जिन्होंने गाड़ी को पटरी पर ला दिया.
भारत के बनने की कहानी का दूसरा अध्याय पूरा हुआ... भारत जब आजाद हुआ था तब आजादी के साथ ही देश के माथे पर जंग की रेखाएं भी मानों खिंच गई थीं.
देश ने आजादी के तुरंत बाद 1947-48 में कश्मीर युद्ध देखा, 1962 में चीन के साथ जंग झेली, 1965 में फिर कश्मीर के साथ युद्ध हुआ... 1971 की जंग ने भारतीय उपमहाद्वीप का भुगोल एकबार फिर बदलकर रख दिया... भारत के बनने की कहानी की अगली कड़ी में जानेंगे 1971 की जंग और परमाणु परीक्षण के बारे में.
जय हिंद