Supreme Court के जज 26 हफ्ते का गर्भ गिराने के मामले में एक राय नहीं, जानिए पूरा मामला

Updated : Oct 11, 2023 19:35
|
Editorji News Desk

सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने एक विवाहित महिला को 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देने के उसके नौ अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की केन्द्र की याचिका पर बुधवार को खंडित फैसला सुनाया. एक न्यायाधीश ने गर्भपात की अनुमति देने में अनिच्छा प्रकट की, वहीं अन्य ने कहा कि महिला के फैसले का सम्मान होना चाहिए.

न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि कौन सी अदालत कहेगी कि ‘एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को रोका जाए’’. उन्होंने कहा कि वह 27 वर्षीय महिला को गर्भपात की अनुमति नहीं दे सकतीं. वहीं, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने कहा कि अदालत को महिला के निर्णय का सम्मान करना चाहिए जो गर्भपात कराने पर कायम रही है.न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति नागरत्ना की पीठ ने 9 अक्टूबर को आदेश पारित किया था. पीठ में दोनों न्यायाधीशों के बीच असहमति के मद्देनजर केन्द्र की याचिका को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष प्रस्तुत करने का फैसला किया गया ताकि उसे उचित पीठ के समक्ष भेजा जा सके.

ये भी पढ़ें: Chhattisgarh Election: गंगाजल के बाद छत्तीसगढ़ में 'कैंडी क्रश' विवाद, रमन सिंह के वार पर बघेल का पलटवार

न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि शीर्ष अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक मेडिकल बोर्ड द्वारा छह अक्टूबर को जमा की गयी रिपोर्ट पर विचार करने के बाद महिला को गर्भपात की अनुमति दी थी. सुनवाई के दौरान, पीठ ने भ्रूण के जीवित रहने की प्रबल संभावना के बारे में मेडिकल बोर्ड के एक सदस्य द्वारा भेजे गए 10 अक्टूबर के ई-मेल पर आपत्ति जताई और पूछा कि कौन सी अदालत कहेगी कि ‘भ्रूण के दिल की धड़कन को रोकें.

पीठ ने पूछा, ‘‘यदि चिकित्सक पिछली रिपोर्ट के दो दिन बाद इतने स्पष्ट हो सकते हैं, तो (पहले की) रिपोर्ट अधिक विस्तृत और अधिक स्पष्ट क्यों नहीं थी? पिछली रिपोर्ट में वे इतने अस्पष्ट क्यों थे?’’ न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि कौन सी अदालत कहेगी कि जिस भ्रूण में जीवन है, उसके दिल की धड़कन बंद कर दो. उन्होंने कहा, ‘‘अपनी बात करूं तो मैं तो नहीं कहूंगी.’’

अपने आदेश में, न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि केंद्र द्वारा आदेश को वापस लेने के लिए दायर आवेदन 10 अक्टूबर के ई-मेल पर आधारित था. पीठ ने कहा कि यह ''बहुत दुर्भाग्यपूर्ण'' है कि आदेश पारित होने के अगले ही दिन ई-मेल भेजा गया. इसमें कहा गया है कि ईमेल में जो कहा गया है उसका उल्लेख मेडिकल बोर्ड की 6 अक्टूबर की रिपोर्ट में किया जाना चाहिए था ताकि अदालत को मामले का ‘सही और स्पष्ट दृष्टिकोण’ मिलता. शीर्ष अदालत ने नौ अक्टूबर को महिला को गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति दी थी. अदालत ने इस बात पर गौर किया कि वह अवसाद से पीड़ित है और भावनात्मक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है.महिला के दो बच्चे हैं.

 

abortion

Recommended For You

editorji | भारत

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में दर्दनाक हादसा! कुएं में जहरीली गैस के रिसाव से पांच लोगों की मौत

editorji | भारत

Arvind Kejriwal Arrest: CM केजरीवाल के मामले में दिल्ली HC का CBI को नोटिस, कब होगी अगली सुनवाई?

editorji | भारत

Noida के Logix Mall में आग लगने की वजह से मची चीख-पुकार, देखें हाहाकारी VIDEO

editorji | भारत

Paris 2024 Olympics: PM मोदी ने खिलाड़ियों से की बात, दिया ये खास मंत्र

editorji | भारत

Amritpal Singh: अमृतपाल सिंह को शपथ ग्रहण के लिए दिल्ली ले जाया जाएगा, कैसी है पंजाब पुलिस की तैयारी?