शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (shankaracharya swami swaroopanand saraswati) को संत परंपरा के अनुसार भू-समाधि (mausoleum) दी गई. भू-समाधि से पहले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के पार्थिव देह की पालकी यात्रा निकाली गई. जहां बड़ी संख्या में साधु-संत और आम लोग शामिल हुए, लेकिन क्या आप जानते हैं कि साधु-संतों को भू-समाधि क्यों दी जाती है ? यहां समझें पूरा महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मृतक व्यक्ति को जलाया जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि आत्मा (Soul) शरीर के आसपास तबतक घूमती है, जबतक व्यक्ति का अंतिम संस्कार (Funeral) नहीं कर दिया जाता. आत्मा को शरीर से दूर करने के लिए ही अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन साधु-संतों के लिए ऐसा नहीं है क्योंकि वो संन्यासी बनते वक्त ही अपना पिंडदान कर देते हैं और मान्यता है कि तभी उनके शरीर से आत्मा दूर हो जाती है, इसीलिए संन्यासी की देह को जलाने की आवश्यकता नहीं होती और उन्हें भू-समाधि दी जाती है.
भू-समाधि देने की प्रक्रिया को भी समझ लीजिए. सबसे पहले शरीर को गंगाजल से स्नान कराया जाता है. उसके बाद शरीर को आसन पर बैठाया जाता है और उस पर विभूति लगाई जाती है. समाधि स्थल पर शरीर को बैठाया जाता है. वस्त्र पहनाकर चंदन लगाया जाता है. फूल माला पहनाई जाती हैं और शरीर को ढंक दिया जाता है. भू-समाधि के बाद उस जगह को गाय को गोबर से लीप दिया जाता है.
भू-समाधि देते वक्त संन्यासी की देह को पद्मासन या सिद्ध आसन मुद्रा में बैठाया जाता है और उनके अंतिम दर्शन किए जाते हैं. वहीं आम लोगों के लिए जहां तेरहवीं की जाती है तो वहीं भू-समाधि के 16 दिन बाद संन्यासी की सोरठी होती है और सोरठी के दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है
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