द्वारकापीठ के शंकराचार्य (Dwarka Sharda Peeth) स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) का 99 साल की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर को अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने देश की आजादी के लिए भी लड़ाई लड़ी थी और जेल भी गए थे. स्वरूपानंद सरस्वती ने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी. इन सबके बीच आइए हम आपको बताते है कि अखिर शंकराचार्य होते कौन हैं ? इनका चुनाव किस प्रकार से होता है. इसके अलावा बहुत कुछ जानेंगे इस लेख में....
शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है. असान भाषा में समझें तो, जिस प्रकार बौद्ध धर्म में दलाईलामा और ईसाई धर्म में पोप होते हैं, उसी प्रकार से हिंदू धर्म में शंकराचार्य होते हैं. माना जाता है कि देश में चार मठों के चार शंकराचार्य होते हैं. इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की थी. इस पद की शुरुआत आदि जगतगुरु शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि जगतगुरु शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये. चारों मठों में प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया है.
आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये. चारों मठों में प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया. तबसे ही इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है. यहां हम आपको बता दें कि मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है, जहां इसके गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश आदि देने का काम करते हैं. इन्हें पीठ भी कहा जाता है. ये गुरु प्रायः धर्म गुरु होते है. दी गई शिक्षा मुख्यतः आध्यात्मिक होती है.
आदि शंकराचार्य (जन्म नाम: शंकर, जन्म: 788 ई. - मृत्यु: 820 ई.) अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक थे. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की. इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता.
चार पीठों की स्थापना करना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय काम था. उन्होंने कई ग्रंथ लिखे. किन्तु उनका दर्शन उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता पर लिखे उनके भाष्यों में मिलता है. आदि शंकराचार्य ने चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी. आदि शंकराचार्य को अद्वैत परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है.
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देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए ये योग्यता जरूरी है- त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, डंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो, राजनीतिक न हो
श्रृंगेरी मठ- ये दक्षिण भारत में चिकमंगलूर में स्थित है.
गोवर्धन मठ- ये भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है.
शारदा मठ- शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है.
ज्योतिर्मठ- उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है
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