Swaroopanand Saraswati:आजादी की लड़ाई से लेकर राम मंदिर निर्माण तक, कौन थे शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती?

Updated : Sep 21, 2022 22:41
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Editorji News Desk

द्वारकापीठ के शंकराचार्य  (Dwarka Sharda Peeth) स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) का 99 साल की उम्र में निधन हो गया है. एमपी के नरसिंहपुर जिले स्थित आश्रम में उन्होंने 11 सितंबर को दोपहर साढ़े तीन बजे के करीब अंतिम सांस ली है. आइए जानते है कि स्वरूपानंद सरस्वती कौन है.  जिन्होंने  आजादी की लड़ाई से लेकर राम मंदिर निर्माण तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म एमपी के सिवनी जिले स्थित दिघोरी गांव में दो सितंबर 1924 को हुआ था. नौ साल की उम्र में धर्म की मार्ग पर चलते हुए घर का त्याग कर दिया था. धर्म के साथ-साथ उनकी दिलचस्पी धार्मिक और सामाजिक मुद्दों में भी रही है. साधु होने के साथ-साथ वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इसलिए उन्हें क्रांतिकारी साधु भी कहा जाता था. यह स्वरूप उनके आगे भी बरकरार रहा है. इसके साथ ही सियासत में कांग्रेस नेताओं के साथ नजदीकियों के कारण भी चर्चा में रहे हैं. 

उनका पैतृक घर सिवनी जिले के दिघोरी गांव में है. वह ब्राह्मण परिवार से आते हैं. पिता का नाम धनपति उपाध्याय था. माता-पिता इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था.  इसी क्रम में वह काशी पहुंचे और स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली. इसके बाद धर्म की राह पर ही चलते रहे. 

आजादी की लड़ाई में लिया था हिस्सा 

दीक्षा ग्रहण के बाद पोथीराम उपाध्याय की दिलचस्पी आजादी की लड़ाई में भी थी. इसी दौरान 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई. उस समय स्वामी जी उम्र 19 साल थी. कुछ अलग करने का जज्बा था. स्वारूपानंद सरस्वती भी इसी उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पडें. इसके बाद इनके साधी उन्हें क्रांतिकारी साधु के रूप से जानने लगे. साथ ही लोग इन्हें इसी नाम से पुकारते भी थे. आंदोलन के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और नौ महीने तक वाराणसी के जेल में कैद रहे. साथ ही छह महीने तक एमपी के जेल में भी रहे हैं.

आजादी की लड़ाई के साथ-साथ वह धार्मिक कार्यों से भी जुड़े थे. 1950 में वे दंडी संन्यासी बन गए थे. इसके लिए उन्होंने शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड-संन्यास की दीक्षा ली थी. इसके बाद से उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाने जाने लगे. पहली बार स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. वह अभी द्वारका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे.

राम मंदिर बनाने पर भाजपा-विहिप पर बोला था हमला 

शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि न्यास के नाम पर विहिप और भाजपा को घेरा था. उन्होंने कहा था- अयोध्या में मंदिर के नाम पर भाजपा-विहिप अपना ऑफिस बनाना चाहते हैं, जो हमें मंजूर नहीं है. हिंदुओं में शंकराचार्य ही सर्वोच्च होता है. हिंदुओं के सुप्रीम कोर्ट हम ही हैं. मंदिर का एक धार्मिक रूप होना चाहिए, लेकिन यह लोग इसे राजनीतिक रूप देना चाहते हैं जो कि हम लोगों को मान्य नहीं है.

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Ram MandirSwaroopanand Saraswati

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