संगीत की रंगशाला में हाजरी लगाने वाले बखूबी जानते होंगे कि संतूर क्या है. संतूर वादक (Santoor Player) इसे बजाने के लिए अपने हाथों का बड़ी सफाई से प्रयोग करते हैं. संतूर का भारतीय नाम ‘शततंत्री वीणा’ यानी 100 तारों वाली वीणा. जिसे बाद में फारसी भाषा से संतूर नाम मिला. जिसमें हिंदुस्तानी और फारसी शास्त्रीय संगीत (Persian Classical Music) के सुर जुड़े हैं. सूफी का रंग समेटे कश्मीर के इसी साज को दुनियाभर में जिसने शोहरत दिलाई. वो नाम है पंडित शिवकुमार शर्मा (Pandit Shiv Kumar Sharma Death). जो आज ब्रह्म में लीन हो गए.
पीएम मोदी ने उन्हें ट्वीट कर श्रद्धांजलि दी
जब पंडित शिवकुमार शर्मा मुड़ी हुई डंडियों से संतूर की तारों को छेड़ते थे. तो माना तरंगों को सजाकर प्रकृति आपना राग सुना रही हो, झरने गा रहे हों. पंडित जी ने सितार की लोकप्रियता को घर-घर पहुंचाया और संतूर को दुनियाभर में अलग पहचान दिलाई. मंगलवार को मुंबई (Mumbai) में उन्होंने 84 साल की उम्र में आखिरी सांस ली. पहाड़ी धुनों वाले एक कश्मीरी लोकवाद्य (Kashmiri folk music) को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत (Classical music) में पिरोने का श्रेय भी पंडित जी को ही जाता है.
13 साल में थाम लिया संतूर
पंडित शिव कुमार शर्मा ने 5 साल की नन्ही उम्र में तबला और गायन सीखा और महज 13 साल की उम्र में संतूर थाम लिया. उम्र के साथ-साथ पंडित जी के संगीत का रुतबा भी बढ़ता गया. उन्होंने बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया (Flute player Pandit Hari Prasad Chaurasia) के साथ मिलकर सिलसिला, लम्हे, चांदनी जैसे कई लोकप्रिय फिल्मों के लिए संगीत दिया था.
पद्म विभूषण से सम्मानित
पंडित शिवकुमार शर्मा ने मुंबई में पहली बार साल 1955 में परफॉर्मेंस दी थी. उन्हें 1991 में पद्म श्री और फिर 2001 में पद्म विभूषण से नवाजा गया. इस महान शख्सियत ने 84 साल की उम्र में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है. उनका यूं जाना हर किसी को उदास कर रहा है.