सफलता के नए रिकॉर्ड्स बना रही फिल्म The Kashmir Files देशभर में सुर्खियां बटोर रही हैं, और इसी के साथ एक बार फिर चर्चा में हैं कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits)और उनके पलायन की दास्तां. धरती के स्वर्ग को छोड़ हिंदुओं (Hindus) के जाने की कहानी हर किसी को भावुकता से भर देती है. और अब पलायन से पहले कश्मीरी पंडितों की धार्मिक गतिविधियों को लेकर भी लोगों के बीच उत्सुकता है.
बताया जाता है कि पलायन से पहले मस्जिदों (Mosque) के बीच बसते थे मंदिर और अजान के लिए उठते हाथों के साथ मंदिरों (Temple) में जुड़ते थे हाथ...लेकिन पलायन के बाद हालात अलग हो गए. कुछ मंदिर टूट गए और कई मंदिरों में मूर्तियां तो रही पर भक्तों की भीड़ नहीं रही. जहां कभी कश्मीरी पंडितों का जमावड़ा रहता था, वहां का प्रांगढ़ काफी वक्त तक खाली रहा. हालांकि, अब मंदिरों में पूजा तो होती और टूरिस्टों की लाइन भी लगती है पर वो रौनक नहीं रही, जो कभी इन मंदिरों में घंटों की आवाज के साथ गूंजा करती थी.
आइए जानते हैं कश्मीर के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जहां पहले कभी भोर से ही कश्मीरी पंडितों की भीड़ और खासी रौनक रहती थी.
शंकराचार्य मंदिर (Shankaracharya Temple)
कश्मीर में जबरवां पर्वत पर शंकराचार्य पहाड़ी की चोटी पर है स्थित
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर को ज्येष्ठेश्वर के नाम से भी जाना जाता है
1000 फीट की ऊंचाई पर बना ये मंदिर, कश्मीर घाटी के सबसे पुराने मंदिरों में से एक
खीर भवानी मंदिर ( Kheer Bhawani Temple)
श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 25km दूर तुलमुल गांव के पास है स्थित
पवित्र झरने के ऊपर बना ये मंदिर देवी खीर-भवानी को है समर्पित
देवी को चढ़ता है चावल और दूध का खास चढ़ावा
मई या जून में पूर्णिमा के आठवें दिन मनता है वार्षिक उत्सव
मान्यता है कि देवी की कृपा से झरने का रंग भी बदल जाता है
शारिका देवी मंदिर (Sharika Devi Temple)
श्रीनगर के हरि पर्वत पर स्थित है प्रसिद्ध शारिका देवी मंदिर
कश्मीरी पंडितों के पवित्र स्थलों में से एक है ये मंदिर
श्री चक्र पर विराजमान देवी की पवित्र मूर्ति की 18 भुजाएँ हैं
इनके अलावा कश्मीर में ऐसे ही कई और प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनका इतिहास में भी जिक्र है. इनमें सबसे खास है मार्तंड सूर्य मंदिर, जिसके निर्माण, विध्वंस और प्रसिद्धी की गाथा कश्मीर ही नहीं पूरे देश में चर्चित है.
मार्तंड सूर्य मंदिर (Martand Temple)
अनंतनाग से 9km दूर है स्थित, राजा ललितादित्य मुक्तिपीड ने की थी स्थापना
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मंदिर की संरचना 8वीं शताब्दी में हुई
ऐसा भी दावा है कि इसके भी कई सौ वर्षों पूर्व से ही था ये मंदिर
मराठी साहित्य ‘मार्तंड महात्मय’ में भी है मंदिर के महत्व का जिक्र
15वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया
बताया जाता है पूरे एक साल तक मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश जारी रही
मंदिर की जमीन को खोद, उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियां भर दी गईं
फिर लकड़ियों में आग लगा कर मंदिरों को ध्वस्त किया गया
84 स्तंभों और ऐतिहासिक कश्मीरी आर्किटेक्चर के लिए है मशहूर