"गोरखपुर जाते हुए मुझे शांतिभंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उस मामले में मुझे सिर्फ 12 घंटे बंद रखा जा सकता था लेकिन मैं 11 दिन जेल में रहा..."
साल 2006 में संसद सत्र के दौरान लोकसभा स्पीकर के आगे Yogi Adityanath ने जब ये बातें बोलीं, वह रो पड़े थे... दो साल पहले ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) केंद्र की कुर्सी से विदा हुई थी और दो साल बाद, इस वाकये के दौरान शायद ही किसी ने सोचा होगा कि 35 साल का यह शख्स आगे चलकर यूपी में प्रचंड बहुमत वाली बीजेपी की सरकार का मुख्यमंत्री बनेगा...
19 मार्च 2017 को योगी ने जब सीएम पद की शपथ ली, तब हर किसी के जहन में 2006 वाली तस्वीर भी ज़रूर उभर आई थी.
अजय मोहन बिष्ट से बन गए योगी आदित्यनाथ
5 जून 1972 को पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में पैदा हुए थे अजय सिंह बिष्ट. गोरखनाथ मन्दिर (Gorakhnath Mandir) के महंत अवैधनाथ से इनके पारिवारिक संबंध थे. गोरखपुर (Gorakhpur) में ही अजय ने 1994 में संन्यास लिया और तब इनका नाम अजय सिंह बिष्ट (Ajay Singh Bisht) से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) हो गया. 12 सितम्बर 2014 को गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी यहां के महंत बने. 2 दिन बाद इन्हें नाथ पंथ के पारंपरिक अनुष्ठान के साथ मंदिर का पिता पीठाधीश्वर बनाया गया.
राजनीतिक पारी
गोरखपुर संसदीय सीट (Gorakhpur Parliamentary Constituency) बीजेपी के लिए सर्वाधिक सुरक्षित सीटों में से है. वजह है गोरखनाथ मंदिर. योगी के राजनीतिक गुरू रहे महंत अवैद्यनाथ चौथी लोकसभा में हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते थे. इसके बाद नौवीं, दसवीं तथा ग्यारहवीं लोकसभा में भी जीते. 1998 में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीता. 12वीं लोकसभा में उस वक्त 26 साल के योगी सबसे युवा सांसद थे.
गोरखपुर संसदीय सीट और योगी का नाम एकसाथ तब तक जुड़ा रहा, जब तक 2017 में वह यूपी के सीएम नहीं बन गए.
मैथमेटिक्स में पढ़ाई
1977 में टिहरी गढ़वाल के स्कूल से ही शिक्षा की शुरुआत करने वाले योगी के बारे में कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने मैथमेटिक्स में बैचलर्स की डिग्री ली हुई है. 1992 में हेमवंती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय से उन्होंने यह पढ़ाई पूरी की थी.
नाथ संप्रदाय, जिसके प्रमुख हैं योगी
नाथ संप्रदाय भारत योगियों का प्राचीन संप्रदाय है. ये संप्रदाय हठ योग पर आधारित है. इस संप्रदाय में योगियों के दाहसंस्कार नहीं होते. दीक्षा लेने के लिए इन्हें अपने कान छिदवाने होते हैं. यह एक कठोर प्रक्रिया होती है. इस पंथ के योगी या तो जीवित रहते समाधि लेते हैं या शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है. इनका अंत्येष्टि जलाकर नहीं होती है. ऐसा माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है और उसे जलाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है.
योगी और विवाद
योगी आदित्यनाथ से जुड़े विवाद भी कम नहीं. राजनीतिक जीवन में कई बार वह गंभीर धाराओं के तहत मुकदमेबाजी में फंसे हैं. इनमें 302 जैसी गंभीर धाराएं भी शामिल हैं. 1999 में महाराजगंज जिले में योगी के खिलाफ हत्या (302), हत्या की कोशिश (307) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. इनपर धारा 147 (दंगे की साजिश), 148 (घातक हथियार से हिंसा), आदि धाराओं में भी मामले दर्ज किए गए थे.
2006 में गोरखपुर जिले में इनपर 147, 148, 133A (उपद्रव खत्म करने के लिए सशर्त आदेश), आदि धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए थे. यहीं पर इनके खिलाफ कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण के लिए धारा 297 के तहत केस दर्ज किया गया था. 2007 में ही गोरखपुर के एक घटनाक्रम में उनपर 147, 133A, 295, 297, 435 धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे.
राज्य में बीजेपी की मौजूदा सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस भी लिए गए. इसमें, 1995 में गोरखपुर के पीपीगंज थाने में दर्ज मामला अहम है. तब धारा 144 लागू होने के बावजूद प्रदर्शन करने पर योगी पर मुकदमा दर्ज कर गैर जमानती वॉरंट जारी किया गया था.
राजनीतिक में कदम रखने के बाद से गोरखपुर तक सीमित रहे योगी आदित्यनाथ ने बीते कुछ सालों में खुद को एक मंझा हुआ राजनेता भी साबित किया है, जानकार संभावना जताते हैं कि आने वाले वक्त में योगी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं.