Cheetah Project : 91 करोड़, 5 नर 3 मादा, कूनो राष्ट्रीय उद्यान... इन 8 चीतों की वो बातें जो आप नहीं जानते

Updated : Sep 18, 2022 15:14
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Sagar Singh Pundir

Project Cheetah India : लचकदार बदन, खूंखार आंखें और उनमें चालाकी, करीब 120 किमी/घंटा की डरावनी रफ्तार, शिकार पर बाज सी निगाहें और कैट फैमली (Cat Family) के सबसे खूबसूरत सदस्य चीते के गुर्राने की गूंज 7 दशक बाद भारत में फिर सुनाई देगी. साल 1952 में भारत से विलुप्त हो चुका चीता एक बार फिर भारत की सरजमीं पर कदम रखने जा रहा है. 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के जन्मदिन के मौके पर देश में लुप्त हो चुका ये जीव, नामीबिया (Namibia) से लाकर मध्य प्रदेश के (India Cheetah Project) कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा. इसके लिए नामीबिया से 8 चीतों को विशेष विमान के जरिए भारत लाया जा रहा है. इसमें 5 मादा और 3 नर चीते शामिल हैं. इस पूरी परियोजना का बजट 91 करोड़ है. 

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'प्रोजेक्ट चीता' के लिए कूनो ही क्यों ?

कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) की स्थापना 1981 में हुई थी. साल 2018 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया. 'प्रोजेक्ट चीता' (Project Cheetah) के लिए सरकार ने देश में मौजूद 10 जगहों में से कूनो को सबसे बेहतर माना. इसका बड़ा कारण ये है कि जानवरों के पुर्नवास में मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड अच्छा रहा है. इससे पहले 2009 में मध्य प्रदेश के पन्ना में बाघों को बसाया गया था. इस इलाके में भारतीय भेड़िए, बंदर, भारतीय तेंदुआ, नीलगाय, चीतल और सुअर जैसे जानवर भी पाए जाते हैं. जो चीतों के लिए प्रयाप्त शिकार है. 

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चीते की खासियत

चीता (Cheetah) जंगल का सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है. चीता शेर की तरह दहाड़ता नहीं है बल्कि गुर्राता है. ये जानवर 8 महीने का होते ही खुद शिकार करने लगता हैं. चीते के शावक 3 हफ्ते में ही मीट खाने लगते हैं. सबसे खास बात ये है कि चीते कभी इंसान पर हमला नहीं करते. दुनिया में एक भी ऐसा मामला नहीं आया है, जिसमें चीतों ने इंसान पर हमला किया हो. इस बेहद खूबसूरत जानवर की उम्र 10 से 12 साल की होती है.

1947 में अंतिम चीतों का शिकार

जंगल में संतुलन बनाए रखने के लिए बड़े जानवरों का होना जरुरी माना जाता है लेकिन चीता एकमात्र ऐसा बड़ा मांसाहारी जानवर है, जो भारत में पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है. माना जाता है कि साल 1947 में मध्य प्रदेश के कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव (Maharaja Ramanuj Pratap Singh Deo) ने देश में अंतिम तीन चीतों का शिकार किया था. जिसके 5 साल बाद यानी 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा कर दी. 

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1918-1945 के बीच विदेशों से आए 200 चीते

माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर (Mughal emperor Akbar) के पास एक हजार चीते थे. जिनका इस्तेमाल शिकार करने के लिए किया जाता था. जानकार मानते हैं कि भारत में चीतों को पकड़ने और कैद में रखने के चलते प्रजनन क्रिया में कमी आई. नतीजा ये हुआ कि बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों में रह गई. जिसके बाद राजकुमारों ने अफ्रीकी जानवरों को आयात करना शुरू कर दिया. रिकॉर्ड के मुताबिक 1918 से 1945 के बीच करीब 200 चीते आयात किए गए थे. भारत में आजादी के बाद शिकार करने के चलन के साथ ही चीते भी खत्म हो गए.

Kuno National ParkCheetah Project

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