Why China wants to capture Tawang?: चीन की दुखती रग है तवांग, जानें इसपर क्यों कब्जा चाहता है ड्रैगन?

Updated : Dec 15, 2022 17:14
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Mukesh Kumar Tiwari

Why China wants to capture Tawang? : बीते 9 दिसंबर को अरुणाचल के तवांग (Arunachal Pradesh's Tawang) में चीन की सेना ने घुसपैठ की कोशिश की, जिसे हमारे जांबाज जवानों ने नाकाम कर दिया. चीन पहले भी कई बार तवांग में ऐसी हरकत कर चुका है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों चीन तवांग पर कब्जा करना चाहता है? वो क्यों मैकमोहन लाइन (Mcmahon Line) को खारिज करता है जिसका निर्धारण 1914 में चीन-तिब्बत के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हुआ था...

9 दिसंबर 2022 को चीनी सेना ने किया तवांग पर हमला

9 दिसंबर 2022 को चीन ने एक बार फिर तवांग पर कब्जे की कोशिश की. तवांग, भारत के उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में स्थित है. 1972 तक अरुणाचल को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA) के नाम से जाना जाता था. अरुणाचल, उत्तरपूर्वी भारत का सबसे बड़ा राज्य है. इसकी अंतराष्ट्रीय सीमा उत्तर और उत्तर पूर्व में तिब्बत, पश्चिम में भूटान और पूर्व में म्यांमार के साथ मिलती है. 

यह राज्य एक तरह से उत्तर पूर्व को सुरक्षित रखने वाली सरजमीं है. हालांकि चीन, अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत के रूप में मानता है. चीन का दावा पूरे अरुणाचल पर है लेकिन उसकी नजरें हमेशा से तवांग पर ही रही हैं. यह क्षेत्र अरुणाचल के उत्तर पश्चिमी छोर पर है और इसकी सीमा भूटान और तिब्बत से लगती हैं.

तवांग पर चीन की रुचि की एक वजह टैक्टिकल है. ये जगह भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में एंट्री का रास्ता है. तिब्बत-ब्रह्मपुत्र वैली कॉरिडोर में ये एक अहम पॉइंट है. 

1914 में हुआ था शिमला कन्वेंशन

चीन की ये हेकड़ी तब है जब 1914 में शिमला कन्वेंशन में चीनी प्रतिनिधि और तिब्बती प्रतिनिधि की मौजूदगी में मैकमोहन लाइन बनाई गई थी जिसने पूर्वी सेक्टर में तिब्बत और भारत को अलग किया था. इस लाइन ने भारत और तिब्बत के बीच रेखा को साफतौर पर डिफाइन कर दिया था. 

तिब्बत के पश्चिम में झ़ंगझ़ुंग राज्य है और यहीं पर बॉन परम्परा की शुरुआत हुई थी. सातवीं शताब्दी में सम्राट सोंग्त्सेन गम्पो ने इसे जीतकर अपने राज्य में मिलाकर तिब्बती साम्राज्य का विस्तार किया था. तब शादी की मान्यताओं के हिसाब से दोस्ती बढ़ाने वाली सोच के हिसाब से उनकी तीन पत्नियां थीं. एक चीन से, एक नेपाल से, और एक झ़ंगझ़ुंग से थी. हर पत्नी अपने यहां की परम्परा से जुड़े ग्रंथ लेकर मध्य तिब्बत आई थी, और इसे ही तिब्बत में बौद्ध धर्म की शुरुआत के रूप में जाना गया. 

तिब्बत में बौद्ध धर्म का जो रूप दिखाई देता है, वह दुनिया के दूसरे हिस्से में पाए जाने वाले बौद्ध धर्म से अलग है. तिब्बती बौद्ध धर्म में तांत्रिक साधनाएं भी शामिल हैं...  

तिब्बती बौद्ध धर्म की यही परंपराएं मिलती हैं भारत के अरुणाचल के तवांग में.. और यही वजह है कि चीन इस इलाके पर अपना दावा करता है और इसपर कब्जे की कोशिश भी करता है....

तवांग में है तिब्बती बौद्ध धर्म की दूसरी सबसे बड़ी मोनेस्ट्री

अब बात करते हैं यहां के तवांग गांडेन नामग्याल ल्हात्से (तवांग मोनेस्ट्री) की, जो तिब्बती बौद्ध धर्म की दूसरी सबसे मोनेस्ट्री है. इस मोनेस्ट्री को बनाया था मेराग लोडरोय जिमात्सो ने 1680-81 में, 5वें दलाई लामा के सम्मान में... चीन दावा करता है कि मोनेस्ट्री इस बात का सबूत है कि यह जिला कभी तिब्बत का हिस्सा था. वह तवांग मोनेस्ट्री और ल्हासा मोनेस्ट्री के ऐतिहासिक रिश्ते की बात कहकर अरुणाचल पर अपना दावा जताता है.

उपरी अरुणाचल में हैं तिब्बत से जुड़ी जनजातियां

तवांग तिब्बती बौद्ध का एक प्रमुख केंद्र है. अरुणाचल के उपरी हिस्से में ऐसी कई जनजातियां हैं जिनका तिब्बत की जनता से सांस्कृतिक रिश्ता रहा है. मोनपा कबीला तिब्बती बौद्ध धर्म की मान्यताओं पर चलता है.

कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन को डर है कि इन नस्लीय कबीलों की अरुणाचल में मौजूदगी तिब्बत की आजादी के आंदोलन को तेज कर सकती है और चीन के लिए ये सबसे बड़ा खतरा बन सकती हैं.

1959 में दलाई लामा सबसे पहले तवांग ही आए थे

1959 में जब दलाई लामा चीन से बचकर भारत आए थे तो वह सबसे पहले यहीं आए थे. वह भारत में तवांग के रास्ते ही आए थे और कुछ वक्त तक तवांग मोनेस्ट्री में ही रहे थे. 

अगर चीन, अरुणाचल पर कब्जा कर लेता है, तो इसका मतलब है कि किंग्डम ऑफ भूटान पश्चिमी और पूर्वी, दोनों सीमाओं पर चीन का पड़ोसी बन जाएगा.

तवांग के पास चीन तेज कर चुका है निर्माण कार्य

चीन भूटान के पश्चिमी हिस्से पर लगातार बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कर रहा है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन अपनी सड़क को डोकालाम से गामोचिन तक बनाना चाहता है, जो भारतीय सेना की निगरानी वाला हिस्सा है. चीन सिलिगुढ़ी कॉरिडोर के नजदीक आना चाहता है, जो कि भारत और भूटान दोनों की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है. 

चीन इलाके में रेल नेटवर्क भी तेजी से बढ़ा रहा है.

चीन पर किसी भी तरह के संभावित मिसाइल हमले की सूरत में अरुणाचल भारत के लिए पड़ोसी देश से सबसे नजदीकी क्षेत्र है. अरुणाचल भारत के लिए ऐसी बेस्ट लोकेशन है जहां मल्टी लेयर्ड एयर डिफेंस सिस्टम को तैनात किया जा सकता है इसीलिए अरुणाचल पर कंट्रोल चीन को स्ट्रैटिजिक अडवांटेज देगा.

हम सभी जानते हैं कि भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके की पानी सप्लाई पर चीन का नियंत्रण है. चीन ने कई डैम बनाकर भारत के लिए पानी को जियो स्ट्रैटिजिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है. वह जब चाहे फ्लड या सूखे की स्थिति पैदा कर सकता है.

त्संगपो नदी तिब्बत से निकली है, भारत में बहते हुए जब ये प्रवेश करती है, तो अरुणाचल में इसे सियांग के नाम से जाना जाता है, आगे ये ब्रह्मपुत्र बन जाती है. 2000 में भी तिब्बत में एक डैम की वजह से भारत में तबाही आई थी और नॉर्थ ईस्ट में इससे 30 लोगों की मौत हुई थी.

ये भी देखें- Indo China War in 1962: 1962 में जीतकर भी चीन ने क्यों खाली कर दिया अरुणाचल? जंग का अनसुना किस्सा

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