वर्कप्लेस (Work Place) या दफ्तर (Office) में महिलाओं के साथ होने वाली यौन शोषण (Women Sexual Harassment) की घटनाएं बंद होने का नाम नहीं ले रही. देश के अलग-अलग राज्यों से वर्क प्लेस पर यौन शोषण की कुल 70.17 लाख शिकायतें की गई हैं. ये उस देश के हर नागरिक को शर्मिंदा करने के लिए काफी हैं, जहां औरत को देवी का दर्जा दिया जाता है.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Union Ministry of Women and Child Development) की रिपोर्ट की मानें तो जॉब करने वाली महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित 10 राज्यों में 8 हिंदी भाषी हैं, जबकि इस लिस्ट में दक्षिण भारत के सिर्फ 2 राज्य शामिल हैं.
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वर्कप्लेस पर महिलाओं की सबसे बुरी स्थिति दिल्ली (Delhi) में है. दिल्ली में 11.2 लाख, पंजाब (Punjab) में 10.5 लाख, गुजरात (Gujarat) में 10.4 लाख, आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh ) में 9.31 लाख और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 5.33 लाख, झारखंड (Jharkhand) में 4.64 लाख, महाराष्ट्र (Maharashtra) में 2.95 लाख, तमिलनाडु (Tamil Nadu) में 2.56 लाख, बिहार (Bihar) में 2.44 लाख और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 1.94 लाख यौन शोषण के मामले सामने आए हैं. आंकड़े बताते हैं कि यौन शोषण के बावजूद 55% महिलाएं शिकायत ही नहीं कर पाती हैं. इसके अलावा एक तिहाई महिलाओं को कानून की जानकारी ही नहीं है.
यानी तमाम कोशिशों के बावजूद कॉर्पोरेट वर्ल्ड (Corporate World) में अभी भी वर्किंग वुमन का रास्ता बेहद मुश्किल है. एक एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार
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देश की टॉप 100 कंपनियों में यौन शोषण के मामले बहुत ज्यादा हैं. 2019-20 में Metoo कैंपेन के दौरान 999 शिकायतें सामने आई थीं. 2020-21 में 595 शिकायतें, जबकि 2021-22 में 759 शिकायतें आईं. आंकड़ों की मानें तो 50 फीसदी महिलाओं को अपने करियर में कम से कम एक बार यौन शोषण का सामना करना पड़ता है.
वर्कप्लेस या दफ्तर में महिलाओं के साथ होने वाली यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियम हैं, लेकिन महिलाओं के मन में एक असमंजस की स्थिति होती है कि किस घटना को यौन शोषण मानकर शिकायत करें और किसे नहीं. तो चलिए हम आपको बतातें हैं कि आखिर वर्कप्लेस पर हैरेसमेंट के दायरे में क्या-क्या आता है ?