मद्रास हाईकोर्ट (Madras Highcour) ने 7 अक्टूबर को दिए अपने एक अहम आदेश में कहा कि एक दलित की ओर से क्रॉस और दूसरे धार्मिक प्रतीकों को पहनने की वजह से उसका अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकता. रामनाथपुरम की एक महिला डॉक्टर की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति एम दुरईस्वामी की खंडपीठ ने कहा कि ये नौकरशाही की संकीर्णता है जिसे संविधान ने कभी नहीं देखा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि दलित समुदाय के एक सदस्य ने एक ईसाई से शादी की और उसके बच्चों को उसके पति के समुदाय के सदस्यों के रूप में मान्यता दी गई, ऐसे में उसे जारी किया गया प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकता.
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दरअसल हाईकोर्ट रामनाथपुरम जिले की एक महिला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें जिला कलेक्टर की ओर से उनके सामुदायिक प्रमाण पत्र रद्द करने के 2013 के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, इस महिला का जन्म बतौर हिंदू एक अनुसूचित जाति के परिवार में हुआ था और बाद में उन्होंने एक ईसाई से शादी की.जिसके चलते उसका सर्टिफिकेट रद्द कर दिया गया.