Supreme Court on Tripura Police: सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा पुलिस को निर्देश दिया है कि वो सांप्रदायिक हिंसा (Communal Violence) मामले में वकीलों और पत्रकार के खिलाफ कोई एक्शन न ले. 17 नवंबर को चीफ जस्टिस एनवी रमना (CJI NV Ramna), जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने वकील मुकेश (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के सदस्य) और अंसार इंदौरी (सचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन) के साथ ही पत्रकार श्याम मीरा सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए त्रिपुरा पुलिस को ये आदेश दिया है.
दरअसल त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर वकीलों ने वहां जाकर जमीनी हालात का जायजा लेने के बाद एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट (Fact Finding Report) बनाई थी और शेयर की थी, इसमें पुलिस प्रशासन के रोल पर सवाल उठाए गए थे. तो वहीं पत्रकार श्याम मीरा ने सिर्फ ये ट्वीट किया था कि 'त्रिपुरा जल रहा है'. त्रिपुरा पुलिस ने इनके खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर समन कर लिया.
सुप्रीम कोर्ट में इनका पक्ष रख रहे हैं वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण. अपनी याचिका में इन्होंने ना सिर्फ UAPA के तहत केस दर्ज करने को बल्कि UAPA के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए टॉप कोर्ट से उन्हें रद्द करने की मांग की है.
याचिका में कहा गया है कि, उनपर UAPA इसलिए लगाया गया ताकि उन्होंने जो फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बनाई थी उसे दबाया जा सके. ये फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट “Humanity Under Attack in Tripura #Muslim Lives Matter” के नाम से प्रकाशित की गई थी. याचिका में आगे कहा गया है कि, राज्य की कोशिश है कि ऐसी कोई भी खबर बाहर ना आए जो उसके खिलाफ हो. इसमें ये भी कहा गया है कि, अगर रिपोर्टिंग करने वालों और सच का पता लगाने वालों को ही अपराधी बनाया जाएगा, तो यह सीधा न्याय पर प्रहार होगा. ऐसा होने से सिर्फ वही सच सामने आएगा जो राज्य को पसंद होगा. यह लोकतांत्रिक समाज की नींव पर प्रहार है.
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