वेब पोर्टल और निजी मीडिया संस्थानों (Web portals and private media) पर कोई नकेल न होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बेहद तीखी टिप्पणी की है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि बिना किसी जवाबदेही के वेब पोर्टल (Web portal) पर सामग्री परोसी जा रही है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर हर चीज और विषय को सांप्रदायिक रंग क्यों दे दिया जाता है?
चीफ जस्टिस एनवी रमना (Chief Justice NV Ramana) ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर सोशल और डिजिटल मीडिया पर निगरानी के लिए आयोग बनाने के वायदे का क्या हुआ? इस पर कितना काम आगे बढ़ा? दरअसल चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind), पीस पार्टी और वक्फ इंस्टीट्यूट की ओर से दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही है. इस याचिका में मरकज निजामुद्दीन में हुई धार्मिक सभा से संबंधित फर्जी समाचारों को रोकने की मांग की गई थी. इसी पर कोर्ट ने कहा निजी समाचार चैनलों के एक हिस्से में दिखाई जाने वाली लगभग खबर में सांप्रदायिक रंग होता है. अंतत: इस देश की बदनामी होने वाली है. सोशल मीडिया केवल शक्तिशाली आवाजों को सुनता है और बिना किसी जवाबदेही के न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ कई चीजें लिखी जाती हैं. . सुनवाई के दौरान वेब मीडिया (Web Media) पर नियंत्रण रखने के लिए आयोग बनाने पर भी कोर्ट ने केंद्र सरकार (Central Government) से सवाल पूछा है.