एक नई स्टडी के मुताबिक, अस्थमा से पीड़ित लोगों में दूसरों की तुलना में ब्रेन ट्यूमर का खतरा कम होता है. और ऐसा टी सेल के एक्शन की वजह से होता है. बता दें कि टी सेल एक तरह का इम्यून सेल (Immune cells) होता है जब किसी व्यक्ति को अस्थमा होता है, तो उसकी टी सेल एक्टिव हो जाती है.
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन के रिसर्चर्स की ओर से की गई स्टडी के निष्कर्ष को जर्नल कम्यूनिकेशंस में छापा गया है.
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चूहों पर की गई स्टडी में रिसर्चर्स ने पाया कि अस्थमा टी सेल को ऐसे एक्शन करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे फेफड़ों का संक्रमण तो बढ़ जाता है लेकिन ब्रेन ट्यूमर का विकास रुक जाता है. ये निष्कर्ष बताता है कि कुछ बदलावों के साथ टी सेल का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर के इलाज में किया जा सकता है.
लेकिन इसके साथ ही रिसर्चर्स ने ये भी जोड़ा कि निश्चित तौर पर हम ये नहीं कहना चाहते कि अस्थमा जैसी घातक बीमारी अच्छी है. लेकिन अगर हम अगर कुछ ऐसा कर सकें, जिससे दिमाग में प्रवेश करने वाली टी सेल, अस्थमा की टी सेल की तरह व्यवहार करने लगें तो ब्रेन ट्यूमर के विकास को रोका जा सकता है. इससे ब्रेन ट्यूमर के इलाज का एक नया रास्ता खुल सकता है
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बता दें कि अस्थमा या दमा सांस से जुड़ी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है, जो सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. ये सांस की नली में सूजन और संकुचन का कारण बनता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है
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