जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान या उससे पहले डायबिटीज़ की बीमारी होती है, उनके पैदा होने वाले बच्चों को आखों से जुड़ी समस्या हो सकती है. डायबेटोलॉज़िया (द जर्नल ऑफ द यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज़) में छपी स्टडी में खुलासा हुआ है.
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स्टडी में बताया गया है कि जिन माताओं को डायबिटीज़ की समस्या है, उनके प्रेगनेंसी में इसका असर उनके बच्चों पर भी पड़ सकता है. स्टडी के मुताबिक, प्रेगनेंसी के दौरान मां में हाइपरग्लेसेमिया (हाई ब्लड शुगर) से इसका असर भ्रूण पर आ सकता है और इससे उस भ्रूण में भी ब्लड शुगर का लेवल बढ़ सकता है. इसका प्रभाव बच्चे के रेटिना और आंख की तंत्रिकाओं पर पड़ सकता है. इतना ही नहीं, आंखों के आकार पर भी ये असर डाल सकता है. डायबिटीज़ के ज़्यादा बढ़ने पर बच्चों में रिफ्रेक्टिव एरर (RE) की समस्या हो सकती है. यानी ऐसी स्थिति जिसमें आंख के रेटिना पर सही पिक्चर नहीं बनती है.
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लंबे समय तक की गई स्टडी में साल 1977 से 2016 के बीच डेनमार्क में पैदा हुए लगभग 24 लाख लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. इनमें से 56 हज़ार से अधिक लोग प्रेगनेंसी के दौरान अपनी मां के साथ डायबिटीज़ से संपर्क में थे.
नतीजों के अनुसार, डायबिटीज़ से पीड़ित मांओं से पैदा हुए बच्चों में बिना डायबिटीज़ वाली मांओं की तुलना में रिफ्रेक्टिव एरर (RE) का ख़तरा 39 फीसदी अधिक था, रिसर्चर्स ने ये भी नतीजा निकाला कि हायपरमेट्रोपिया या दूरदृष्टि बचपन में अधिक होती है जबकि मायोपिया यानि निकटदृष्टि किशोरावस्था और युवा अवस्था में अधिक बार होती है.