Covid Delta Variant: दुनियाभर के साइंटिस्ट्स लगातार कोरोना के डेल्टा वेरिएंट और उसके ट्रांसमिशन के पीछे के वैज्ञानिक कारणों का पता लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं. कई स्टडीज में ये सामने आया है कि कोरोना का डेल्टा वेरिएंट वैक्सीन के असर को कम कर सकता है, और अगर कोई मरीज़ प्री सिम्पटोमैटिक फेज में है तब भी वेरिएंट काफी इंफेक्शियस हो सकता है. जिस वजह से ये लोगों में तेज़ी से फैलता है.
हाल ही में हुई एक रिसर्च से ये पता चला है कि डेल्टा यानी B.1.617.2 वेरिएंट, अल्फा वेरिएंट से लगभग 40 गुना ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. अल्फा वेरिएंट पहली बार 2020 में UK में पाया गया था. इसके अलावा कई स्टडीज में ये भी सामने आया है कि वैक्सीन्स भी डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ बहुत ज़्यादा कारगर नहीं हैं और दोनों वैक्सीन लगवा चुके लोगों में भी इसके संक्रमण का खतरा बरकरार है.
यूनाइटेड स्टेट्स के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की एक प्रेसेंटेशन में ये कहा गया है कि डेल्टा वेरिएंट MERS, SARS, इबोला, कॉमन कोल्ड और स्मॉल पॉक्स के लिए लिए ज़िम्मेदार वायरस से भी तेज़ी से फैलता है और ये चिकनपॉक्स की तरह कंटेजियस है.
एक हालिया अध्ययन में ये बात सामने आई कि डेल्टा वेरिएंट के तेज़ी से फैलने के पीछे एमिनो एसिड म्यूटेशन हो सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस में हुई एक रिसर्च में रिसर्चर्स ने उस म्यूटेशन के बारे में बताया जो SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन में मौजूद एमिनो एसिड में बदलाव करता है. नेचर जर्नल में छपी स्टडी के अनुसार इस बदलाव को P681R कहा जाता है और ये बचे हुए प्रोलाइन को arginine में बदलता है.
Arginine एक तरीके का एमिनो एसिड है जो शरीर में प्रोटीन बनाने में मदद करता है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि डेल्टा म्यूटेंट में कई तरह के म्यूटेशन और P681R बदलाव होते हैं जिसके कारण इसके रैपिड ट्रांसमिशन से जुड़े किसी एक कारण के बारे में बता पाना मुश्किल है.