एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आर-इंफ्रा) और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन के संयुक्त पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप वाली परियोजना के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है. इस अधिग्रहण के बाद मुंबई मेट्रो वन की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी महाराष्ट्र सरकार को मिलेगी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना में अंबानी की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी का मूल्य ₹4,000 करोड़ आंका गया है.
सोमवार को, राज्य कैबिनेट ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ की एक रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है, जिसमें आर-इंफ्रा की हिस्सेदारी का मूल्य ₹4,000 करोड़ आंका गया है. आपको बता दें,हिंदुस्तान टाइम्स के सूत्रों के अनुसार, जोसेफ के नेतृत्व वाले पैनल ने वित्तीय सलाहकार फर्म KROLL की रिपोर्ट का उपयोग करते हुए, मूल्यांकन के आंकड़ों तक पहुंचने के लिए” रियायती नकदी प्रवाह मॉडल” को नियोजित किया है.
शहर की पहली मेट्रो परियोजना 2007 में मुंबई मेट्रो वन बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर मॉडल के तहत शुरू की गई थी. संयुक्त उद्यम भागीदारों के बीच हमेशा विवादों का विषय रही है. रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (एमएमओपीएल) नामक इकाई में एमएमआरडीए की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि आर-इन्फ्रा के पास 74 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
सबसे अधिक भीड़- भाड़ वाली मेट्रो होने के बावजूद टिकटिंग संरचना, किराये में बढ़ौतरी और अलग- अलग मुद्दों पर विवादों से भरी है एमएमआरडीए-रिलायंस इंफ्रा संयुक्त उद्यम परियोजना. एमएमओपीएल ने लगातार घाटे का दावा किया है, जबकि एमएमआरडीए ने इन दावों पर सवाल उठाया है और किराया वृद्धि की मांग को खारिज कर दिया है.
परियोजना की लागत भी विवाद का विषय रही है, एमएमओपीएल ने निर्माण लागत ₹4,026 करोड़ का दावा किया था, जिसे एमएमआरडीए ने खारिज करते हुए कहा कि वास्तविक लागत ₹2,356 करोड़ थी. इसके अतिरिक्त, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने एमएमओपीएल को संपत्ति कर का भुगतान करने के लिए कहा था। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2020 में, COVID-19 महामारी के दौरान घाटे के बीच, MMOPL ने राज्य सरकार और MMRDA को पत्र लिखकर उसकी हिस्सेदारी खरीदने का अनुरोध किया.
पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस फैसले की आलोचना की है . रिपोर्ट में चव्हाण के हवाले से कहा गया की, "अधिग्रहण मूल्य को लेकर विवाद था. सरकार को वित्तीय और कानूनी सलाह दी गई थी. जो कीमत बताई गई थी वह बहुत ज्यादा थी. लेकिन यह सरकार अनिल अंबानी समूह का पक्ष ले रही है."