Economic Survey: जैसा कि हम सभी को पता है कि हर साल एक फरवरी को देश का बजट पेश किया जाता है, लेकिन इससे एक दिन पहले संसद में एक और दस्तावेज पेश होता है, वह इकनॉमिक सर्वे या आर्थिक सर्वेक्षण कहलाता है. ये होता क्या है और कितना ज़रूरी है? आइए समझते हैं...
इकनॉमिक सर्वे से बजट की साफ तस्वीर पेश होती है. यह सर्वे बजट का मुख्य आधार होता है. चलिए इसे उदाहरण से समझते हैं. जैसे कि- ज्यादातर घरों में खर्चों का हिसाब-किताब रखने के लिए एक डायरी बनाते हैं. साल के अंत में इस डायरी को देखते हैं तो पता लगता है कि कहां पर कितना खर्च किया? कितनी बचत की? इसी के आधार पर तय किया जाता है कि आने वाले साल में कितना खर्च और कितनी बचत करनी है?
इकनॉमिक सर्वे इसी डायरी की तरह होता है. इससे देश की अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर सामने आती है. पता चलता है कि मौज़ूदा समय में अर्थव्यवस्था की क्या हालत है? पिछले साल का क्या हिसाब-किताब रहा और आगामी साल के लिए किस तरह की चुनौतियां होंगी, साथ ही सुझाव और समाधान भी शामिल रहते हैं.
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वित्त वर्ष 1950-51 में पहली बार देश का इकनॉमिक सर्वे पेश किया गया था. 1964 तक ये बजट के साथ ही पेश होता था. बाद में इसे बजट से एक दिन पहले पेश किया जाने लगा. इकनॉमिक सर्वे दो वॉल्यूम में पेश किया जाता है. 2014-15 से पहले इसे एक वॉल्यूम में पेश किया जाता था.
वित्त मंत्रालय के इकनॉमिक अफेयर्स के इकनॉमिक डिवीजन द्वारा ये सर्वे तैयार किया जाता है. चीफ इकनॉमिक एडवाइजर यानी मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में ये सर्वे तैयार होता है.
इकनॉमिक सर्वे देश की अर्थव्यवस्था के लिए पथ प्रदर्शक की तरह काम करता है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में क्या सुधार करने की ज़रूरत है? हालांकि सरकार सर्वे में दिए गए सुझावों, समाधानों को नहीं भी मान सकती है. फिर भी इसके महत्व को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इससे पिछले साल की अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा मिलता है.
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