Digital Personal Data Protection Bill: संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है. इसमें कई तरह की चर्चायें होती हैं और बिल भी पेश किए जाते हैं. जिन पर दोनों सदनों की मंज़ूरी मिलना ज़रूरी होता है. 7 अगस्त को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्यसभा में एक बिल पास हुआ जिसके कानून बनने के बाद लोगों को अपने डेटा के कलेक्शन, स्टोरेज और प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी मांगने का अधिकार मिल जाएगा. ये बिल है, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDP). अब इस बिल का असर हम सभी पर होगा तो हमें लगा कि इससे जुड़ी ज़रूरी बातें आपसे शेयर करनी चाहिए. तो चलिए जानते हैं इस बिल के बारे में..
सबसे पहले तो ये जान लेते हैं कि डिजिटल पर्सनल डेटा (Digital Personal Data) होता क्या है. जब भी आप अपने मोबाइल में कोई ऐप इंस्टॉल करते हैं तो आपसे कई प्रकार की परमिशन मांगी जाती है. जैसे कि- गैलरी, कॉन्टैक्ट, कैमरा, लोकेशन आदि का एक्सेस. इसके अलावा आप सोशल मीडिया पर क्या शेयर करते हैं, किससे बात करते हैं जैसी जानकारी भी इसके अंतर्गत आती है. इसके अलावा क्या ऑनलाइन शॉपिंग की, किसको कितने रुपये ट्रांसफर किए, जैसी जानकारी भी. एक लाइन में बतायें तो मोबाइल या किसी भी गैजेट पर इंटरनेट यूज़ करते हुए जब आप कोई भी इंफॉर्मेशन शेयर करते हैं तो वो इंफॉर्मेशन उन कंपनियों के लिए डेटा होता है जिनके ऐप या सर्विस का आप इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में ऐप या कंपनियां आपके डेटा को एक्सेस कर सकती हैं और ऐप बनाने वाली कंपनी अपने हिसाब से उसका इस्तेमाल करती है. साथ ही डिजिटल पर्सनल डेटा में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, पैन कार्ड, बायोमेट्रिक संबंधी जानकारी भी शामिल होती है. अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि जिसके तहत हम जान सकें कि वे हमारे किस डेटा का क्या यूज़ कर रहे हैं. इस बिल के ज़रिए इसी तरह के डेटा को प्रोटेक्ट किया जा सकेगा. बता दें कि बिल में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह का डेटा शामिल होता है जिसे बाद में डिजिटाइज़ किया गया हो.
इस बिल को लाने का उद्देश्य यूज़र्स के डेटा के कलेक्शन, स्टोरेज और उसके इस्तेमाल के लिए कंपनियों को जवाबदेह बनाना है.
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1. कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि यूज़र्स का पर्सनल डेटा सेफ है. इसके लिए चाहे वे अपने सर्वर में डेटा स्टोर करें या फिर थर्ड पार्टी डेटा प्रोसेसर के पास
2. अगर डेटा ब्रीच होता है तो कंपनियों को डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड और उससे जो लोग प्रभावित हुए हैं, उन्हें जानकारी देनी होगी
3. कंपनियों को डेटा प्रोटेक्शन ऑफिसर अपॉइंट करना होगा. साथ ही यूजर्स के साथ कॉन्टैक्ट डिटेल शेयर करनी होंगी
4. अगर डेटा ब्रीच होता है या कंपनियां पर्सनल डेटा को प्रोटेक्ट करने या डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड (DPB) और प्रभावित यूज़र्स को जानकारी देने मे असफल रहती हैं तो उन पर 250 करोड़ रु. का जुर्माना लगाया जा सकता है.
सरकार ने यूज़र्स का निजी डेटा भारत से बाहर किसी भी दूसरे देश में स्टोर करने पर पाबंदी लगा दी है. इसके लिए सरकार एक लिस्ट भी तैयार करेगी जिसमें वो देश शामिल होंगे जिनके साथ भारत के लोगों का पर्सनल डेटा शेयर नहीं किया जा सकेगा. बिल के मुताबिक, डेटा स्टोर करने के लिए भारत में या मित्र देशों में ही सर्वर बनाया जा सकेगा. यूज़र की मर्जी के बिना उनका डेटा शेयर करने पर मनाही होगी.
जो लोग सोशल मीडिया चलाते हैं, उन्होंने नोटिस किया होगा कि जब भी अकाउंट डिलीट करते हैं तो कंपनियां अपने सर्वर पर यूज़र का डेटा सेव रखती हैं. परमानेंट डिलीट नहीं करती हैं. अब नए बिल के प्रावधानों के तहत ऐसा नहीं होगा. इसके तहत कंपनियां यूज़र के डेटा को तब तक ही सेव रख सकती हैं जब तक उसका अकाउंट एक्टिव है. अकाउंट डिलीट करने पर सर्वर से भी डेटा डिलीट करना होगा. इसके अलावा यूज़र्स अगर किसी वेबसाइट या ऐप पर डेटा अपडेट करते हैं तो ऐप के सर्वर पर भी अपडेट होना चाहिए.
नए डिजिटल पर्सनल डेटा बिल के मुताबिक, अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों की अटेंडेंस के लिए बायोमेट्रिक डेटा लेती है तो उसे कर्मचारी की सहमति लेनी होगी. यानी कि कर्मचारी का अपने बायोमेट्रिक डेटा पर पूरा अधिकार होगा.
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नए ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, कोई भी कंपनी ऐसा कोई डेटा सेव नहीं कर सकेगी जिससे बच्चों को नुकसान हो. बच्चों के पर्सनल डेटा की प्रोसेसिंग के लिए उनके माता- पिता या कानूनी अभिभावकों की अनुमति ज़रूरी होगी. साथ ही बिल बच्चों के व्यवहार की मॉनिटरिंग या ट्रैकिंग और बच्चों को टारगेट करने वाले एडवरटाइज़िंग पर प्रतिबंध लगाने पर भी फोकस करता है. इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियां भी विज्ञापनों में बच्चों के डेटा को ट्रैक नहीं कर सकती हैं.
इस बिल की सबसे खास बात ये है कि इसमें महिलाओं और पुरुषों, दोनों के लिए Her/She शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यह देश के इतिहास में पहली बार है. अब तक के बिलों में सभी जेंडर्स के लिए His/He टर्म का इस्तेमाल किया जाता था.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild of India) ने इस बिल में प्रेस की फ्रीडम को लेकर चिंता जाहिर की है. गिल्ड के मुताबिक, बिल के क्लॉज 36 में सरकार को इस बात की अनुमति मिलती है कि वह किसी भी प्राइवेट या सरकारी प्लेटफॉर्म से नागरिकों की प्राइवेट इंफॉर्मेशन ले सकती है. इस इंफॉर्मेशन के तहत पत्रकार और उनके सूत्रों की जानकारी भी शामिल होगी. इससे सरकार को न्यूज़ मीडिया के रेगुलेशन और सेंशरशिप का अधिकार मिल जाएगा.
एडिटर्स गिल्ड ने चिंता जाहिर की है कि इससे सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम कमजोर होगा. डेटा शेयरिंग पर पाबंदी से इंन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के लिए जानकारी मिलना मुश्किल हो जाएगा.
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HJA एंड एसोसिएट्स के फाउंडर और मैनेजमेंट पार्टनर और एडवोकेट जीतेंद्र अहलावत ने बिल के बारे में कहा, "डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 भारत में डेटा प्रोटेक्शन संबंधी नियमों को अपडेट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. जैसा कि यूज़र के इंफॉर्मेशन की प्राइवेसी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है लेकिन इसका टेक कंपनियों और आईटी इंडस्ट्री पर पड़ने वाला असर काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ''
साथ ही उन्होंने कहा कि ये कानून, बिज़नस कैसे ऑपरेट करते हैं, का तरीका बदलने, कंप्लायंस कॉस्ट (Compliance Cost) बढ़ाने और डेटा को कैसे हैंडल किया जाता है, में बदलाव कर सकता है. डेटा सिक्योरिटी वाले इन नियमों का पालन करना कंपनियों, विशेष रूप से छोटी कंपनियों के लिए मुश्किल साबित हो सकता है.'
डेलॉयट इंडिया (Deloitte India) के पार्टनर मनीष सहगल ने कहा, “जिस पल का हम पिछले कुछ सालों से इंतजार कर रहे थे, वह आखिरकार आ गया है! बिल लागू होने के बाद, इससे लोगों का अपने पर्सनल (डिजिटल) डेटा पर कंट्रोल होगा. साथ ही इससे कंपनियां अपने यूज़र्स के पर्सनल डेटा को कानून के मुताबिक और केवल कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए ही इस्तेमाल करेंगी.''
अगर पर्सनल डेटा के इस्तेमाल को लेकर यूज़र्स और कंपनी के बीच कोई विवाद की स्थिति बनती है तो डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड के पास जा सकते हैं. नागरिक सिविल कोर्ट में जाकर मुआवजे के लिए क्लेम कर सकेंगे. अभी बिल में बहुत सारी चीजें साफ नहीं हैं जो धीरे-धीरे डेवलप होंगी.
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