Fractional Ownership: जल्द शुरू हो सकती है महंगे शेयर को हिस्सों में खरीदने की सुविधा, सेबी कर रहा विचार

Updated : Oct 16, 2023 09:33
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Parul Sharma

Fractional Ownership Explained: सोमवार को MRF की शेयर वैल्यू 1.07 लाख रुपए से ज्यादा रही. MRF अकेला नहीं, ऐसे कई सारी कंपनियां जैसे- पेज इंडस्ट्रीज (Page Industries), नेस्ले इंडिया (Nestle India) आदि हैं जिनकी शेयर वैल्यू इतनी ज्यादा होती है कि छोटे निवेशक उन्हें नहीं खरीद सकते. साथ ही जमीन और प्रॉपर्टी में निवेश करने के लिए भी ज्यादा पूंजी की ज़रूरत होती है. इसी को देखते हुए सेबी फ्रैक्शनल ओनरशिप (Fractional Ownership) शुरू करने पर विचार कर रहा है. तो चलिए जान लेते हैं कि ये फ्रैक्शनल ओनरशिप क्या है और ये कैसे काम करता है...

क्या है फ्रैक्शनल ओनरशिप?

फ्रैक्शनल ओनरशिप के तहत निवेशक कंपनी का पूरा शेयर न खरीदकर उसका एक हिस्सा खरीद सकते हैं. उदाहरण के लिए, आप MRF के एक शेयर का 25 फीसदी हिस्सा खरीद सकते हैं जो कि आपको 25,000 रु. का पडेगा. इससे लोग कम राशि के साथ आसानी से निवेश कर सकते हैं और विकल्प भी ज्यादा मिलते हैं. 

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फ्रैक्शनल ओनरशिप के लाभ

इसके तहत कम राशि के साथ अलग-अलग कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जा सकता है जिससे निवेशकों को पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने में भी मदद मिलेगी. अगर पैसा अलग-अलग कंपनियों में लगाया जाता है तो इससे रिस्क भी कम होता है. साथ ही कंपनियों को भी लिक्विडिटी बनाए रखने में भी मदद मिलेगी. 

ALYF के फाउंडर और सीईओ सौरभ वोहरा के मुताबिक, ''फ्रैक्शनल ओनरशिप का इस्तेमाल करके निवेशक हाई वैल्यू वाले शेयर के मालिक बन सकते हैं. इससे निवेशकों पर आर्थिक बोझ कम होगा और बड़ी कीमत वाले शेयर उनके लिए अधिक सुलभ और किफायती हो जायेंगे.'' 

युवा निवेशकों के लिए आसान पहुंच

म्युचुअल फंड्स में सिस्टैमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी (SIP) के जरिए निवेश करने वाले युवा निवेशकों के लिए फ्रैक्शनल ओनरशिप बहुत अच्छा मौका है. अपनी सेविंग्स को एक ही महंगा शेयर खरीदने में इस्तेमाल करने की जगह छोटी-छोटी राशि में निवेश करने की आसान सुविधा से अधिक लोग निवेश कर पायेंगे.

अगर शेयरों में फ्रैक्शनल ओनरशिप शुरू होती है तो कंपनियों को स्टॉक स्प्लिट यानी कि एक शेयर को दो-तीन हिस्सों में बांटना नहीं पड़ेगा.

बता दें कि अमेरिका में कुछ प्लेटफॉर्म पर फ्रैक्शनल ओनरशिप की सुविधा का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस सुविधा का इस्तेमाल करके वहां के निवेशक ऐपल जैसी कंपनियों में निवेश कर सकते हैं. अगर भारत में भी ये फैसिलिटी शुरू होती है तो इससे निवेशकों को सही फैसले लेने में और पोर्टफोलियो के डायवर्सिफिकेशन (Portfolio Diversification) में मदद मिलेगी.

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