Gratuity News: प्राइवेट स्कूल के टीचर्स के लिए खुशखबरी, ग्रेच्युटी को लेकर SC ने दिया बड़ा आदेश

Updated : Sep 08, 2022 20:30
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Editorji News Desk

Private schoolteachers entitled to gratuity : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्राइवेट स्कूल के टीचर्स (Private School Teacher) को बड़ी राहत देते हुए ग्रेच्युटी (Gratuity) का अधिकार देने वाले 2009 के कानून को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि निजी स्कूलों को अब उन शिक्षकों को ग्रेच्युटी का भुगतान करना होगा, जो साल 1997 के बाद रिटायर हुए थे. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि, "ग्रेच्युटी के भुगतान (Gratuity Rule) को अप्रत्याशित या प्राइवेट स्कूलों द्वारा देय इनाम के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह सेवा की न्यूनतम शर्तों में से एक है."

पीठ ने कहा कि इस टीचर्स को ग्रेच्युटी देने की क्षमता नहीं होने वाला प्राइवेट स्कूलों का तर्क अनुचित और तुच्छ है.  कोर्ट ने कहा कि ग्रेच्युटी पेमेंट (संशोधन) अधिनियम, 2009 सहित सभी प्रतिष्ठान कानून का पालन करने के लिए बाध्य हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अन्य निजी स्कूलों के साथ-साथ इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर 20 से अधिक याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है और उन्हें कर्मचारियों या टीटर्सों को ग्रेच्युटी (संशोधन) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार छह सप्ताह के भीतर ब्याज के साथ पेमेंट करने का आदेश दिया. 

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पीएजी अधिनियम 16 ​​सितंबर, 1972 से लागू है. इसके तहत उस कर्मचारी को ग्रेच्युटी का लाभ देने का प्रावधान है जिसने अपनी सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या किसी भी कारण संस्थान छोड़ने से पहले कम से कम 5 साल तक निरंतर नौकरी की है. श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा 3 अप्रैल, 1997 को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से इस अधिनियम को दस या अधिक कर्मचारियों वाले शैक्षणिक संस्थानों पर भी लागू किया गया था. ऐसे में ये अधिनियम प्राइवेट स्कूलों पर भी लागू होते हैं. 

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कई हाईकोर्ट में केस हारने के बाद प्राइवेट स्कूलों ने 2009 के संशोधन को देश के शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. उनके अनुसार, छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले टीचर्सों को ग्रेच्युटी भुगतान (संशोधन) अधिनियम  2009 की धारा 2(ई) के तहत कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिए. वे अहमदाबाद प्राइवेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन मामले में शीर्ष अदालत के जनवरी 2004 के फैसले पर भरोसा करते थे, जिसने इस सिद्धांत को निर्धारित किया था. स्कूलों के इसी तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

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