Adani Ambani No Poaching Agreement: भारत की दो सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस (RIL) और अडानी ग्रुप ने एक समझौता किया है. इसके तहत वे कर्मचारी जो रिलायंस या अडानी ग्रुप के लिए काम करते हैं, उनको अब एक-दूसरे के यहां नौकरी नहीं मिलेगी. जी हां, मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इन दोनों कंपनियों ने नो-पोचिंग एग्रीमेंट (No Poaching Agreement) किया है, तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कि नो-पोचिंग एग्रीमेंट (No Poaching Agreement) का कॉन्सेप्ट आया कहां से और इससे दोनों कंपनियों और कर्मचारियों को क्या फायदा-नुकसान होगा.
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दरअसल, नो-पोचिंग एग्रीमेंट (No Poaching Agreement) का कॉन्सेप्ट तब खबरों में आया, जब 2010 में अमेरिका के कानून विभाग ने सिलिकॉन वैली की गूगल, एडोब, इंटेल और ऐपल जैसी कंपनियों के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की हुई. इस शिकायत में कहा गया कि ये कंपनियां आपस में एक-दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी नहीं दे रही थीं. इसके बाद मामले की जांच की गई. जिसमें पाया गया कि इससे अमेरिका के लाखों कर्मचारियों के जीवन पर बुरा असर पड़ा था.
एक्सपर्ट बताते हैं कि टैलेंटेड कर्मचारी बेहतर अवसर देखकर एक कंपनी छोड़कर दूसरी कंपनी में चले जाते थे. इसे रोकने और कर्मचारियों को लंबे समय तक अपनी कंपनी से जोड़े रखने के लिए मैनेजमेंट कई तरीके अपनाती थी. इसमें से एक तरीका ‘नो-पोचिंग एग्रीमेंट’ भी है.
इस समझौते की वजह से रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) में काम करने वाले 3.80 लाख से ज्यादा कर्मचारी और अडानी ग्रुप के 23 हजार से ज्यादा कर्मचारी एक दूसरे की कंपनी में नौकरी नहीं कर पाएंगे.
आपको बता दें कि अडानी ग्रुप (Adani Group) और रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) के बीच हुआ यह समझौता ऐसे वक्त में हुआ है, जब अडानी ग्रुप पेट्रोकेमिकल्स और इंटरनेट सेक्टर में एंट्री कर रहा है और मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस (Reliance) इन दोनों सेक्टरों में देश की सबसे बड़ी कंपनी है.
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