कंपनी ने जॉब से निकाल दिया है लेकिन नहीं पता कि सैलरी मिलेगी या नहीं? यहां जानें अपने अधिकार

Updated : Apr 21, 2023 18:00
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Parul Sharma

जैसा कि दुनियाभर में आर्थिक मंदी की आशंका के चलते पिछले कुछ महीनों से कई कंपनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं, ऐसे में अगर जॉब से निकाले जाते वक्त कंपनी नोटिस नहीं देती है या कॉन्ट्रैक्ट में दिए गए नियमों का पालन नहीं करती है तो कर्मचारी को अपने इन अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और साथ ही ये भी कि कर्मचारी को कब, कितनी और कितने महीने की सैलरी मिलेगी. आइए इन अधिकारों के बारे में जानते हैं (Rights of an employee fired from the job).

1. सबसे पहले तो अगर कंपनी किसी कर्मचारी को जॉब से निकालने का फैसला करती है तो उसे कर्मचारी को नोटिस देना ज़रूरी है. यह नोटिस 30 से लेकर 90 दिन का हो सकता है.

2. कंपनी का कर्मचारी को सभी तरह की बकाया राशि का भुगतान करना ज़रूरी है. बता दें कि श्रम कानून के तहत कर्मचारियों को 3 महीने की सैलरी देना अनिवार्य है. बता दें कि किसी भी कंपनी के लिए कॉन्ट्रैक्ट में दी गई सभी तरह की बकाया राशि का भुगतान ज़रूरी है, भले ही उसकी जानकारी लेबर कानून में न दी गई हो. और अगर लेबर कोड का कोई नियम जो कर्मचारी का हक है और कंपनी के नियम के अंतर्गत कवर नहीं है तो उस मामले में लेबर कोड लागू होगा.

3. अगर कर्मचारी को कंपनी में काम करते हुए 5 साल पूरे हो गए हैं तो ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत कर्मचारी को ग्रेच्युटी का भुगतान करना ज़रूरी है. बता दें कि आपको मिलने वाली ग्रेच्युटी की कैलकुलेशन आपकी सैलरी और आपके कंपनी में कम से कम 5 साल पूरे किए हैं या नहीं, इस पर निर्भर करता है. इसके साथ ही कंपनी में 10 या उससे ज्यादा कर्मचारियों का काम करना भी ज़रूरी है.

4. जॉब से निकाले जाते वक्त अगर कर्मचारी के पास छुट्टियां बकाया हैं तो कंपनी को लीव एनकैशमेंट (Leave Encashment) यानि कि बची हुई छुट्टियों के लिए भुगतान करना ज़रूरी होता है. यह कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है. इसके लिए कोई सरकारी नियम नहीं है. बता दें कि लीव एनकैशमेंट के तहत केवल बची हुई अर्निंग लीव (EL) शामिल होती हैं. सिक और कैजुअल लीव आमतौर पर लैप्स या खत्म हो जाती हैं. 

5. कुछ कंपनियां छंटनी के दौरान कर्मचारियों को नई नौकरी मिलने तक सेवरेंस पैकेज  भी ऑफर करती हैं. इसके तहत कई बेनिफिट शामिल होते हैं, जैसे कि- लाइफ एंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस, टर्म इंश्योरेंस या फिर कंपनी की प्रॉपर्टी जैसे- लैपटॉप, सेलफोन, पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (PDA) और किसी व्हीकल का इस्तेमाल. बता दें कि भारत में श्रम कानूनों के तहत ये ज़रूरी नहीं है कि कंपनी कर्मचारी को सेवरेंस पैकेज ऑफर करे. 

नए लेबर कोड के तहत प्रावधान

अगर कंपनी किसी कर्मचारी को जॉब से निकालती है तो उसे लास्ट वर्किंग डे के 2 दिन के भीतर कर्मचारी को फुल एंड फाइनल पेमेंट करना होगा. मौज़ूदा कानून के तहत ये 45 या 60 दिन में या कभी- कभी 90 दिनों में भी किया जाता है. 

क्या है शॉप एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट और क्या इसके तहत आपके क्या अधिकार हैं

इस ऐक्ट के तहत शॉप, कमर्शियल इस्टैब्लिशमेंट, रेस्त्रां, डायनिंग इस्टैब्लिशमेंट, होटल, थिएटर, सोसायटी, चेरिटेबल ट्रस्ट और शैक्षणिक संस्थाओं में काम करने वाले लोग कवर होते हैं. इस ऐक्ट के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान, छुट्टियां और सर्विस के अन्य नियम तय किए जाते हैं. बता दें कि यह ऐक्ट फैक्ट्री पर लागू नहीं होता है. यह ऐक्ट हर राज्य में अलग-अलग होता है. इसलिए जिस राज्य में आपका ऑफिस है, वहां का ऐक्ट आप पर लागू होता है.

ये तो हुई उन अधिकारों की बात जिनके बारे में हर कर्मचारी को पता होना ज़रूरी है. इसके साथ ही सबसे ज़रूरी बात ये है कि आप अपने एंप्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट को ध्यान से पढ़ें और उसमें दिए गए नियम व शर्तों के बारे में जानें.

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