Amrish Puri Birthday : पंजाब के नवांशहर में 15-16 साल का एक लड़का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( Rashtriya Swayamsevak Sangh ) का कहकहा सीखने लगा था... ये भारत की आजादी के बाद के वर्ष थे... लड़का संघ के दरवाजे तक चरित्र को गढ़ने की सोच लेकर पहुंचा था... घर में 3 भाई अभिनेता थे... और पिता के सामने था शराब की लत में डूबकर जान गंवा चुके चचेरे भाई के एल सहगल ( Kundan Lal Saigal ) का उदाहरण... जो शराब नहीं, बल्कि रम के ड्रम पिया करते थे...
ये भी देखें- Black Hole Tragedy: कलकत्ता की इस घटना ने भारत में खोल दिए अंग्रेजी राज के दरवाजे
पिता को लगता था, फिल्मी दुनिया में जाकर इंसान का चरित्र खराब हो जाता है. बस, लड़के ने पिता के आदर्शों को जिंदा रखने का इरादा लेकर रुख कर लिया संघ का... इसके 4 दशक बाद... इसी लड़के ने हिन्दी सिनेमा में खलनायकी का वह किरदार निभाया जिसने उसे अमर कर दिया... जहन से कभी न उतरने वाले इस किरदार की वजह से ही... जब तक फिल्मों की खलनायकी जिंदा रहेगी... यह शख्स मरकर भी हमारे दिलों में जिंदा रहेगा... झरोखा के आज के एपिसोड में बात होगी... इसी शख्सियत अमरीश पुरी ( Amrish Puri ) की...
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में जब भी खलनायकों की बात होती है, जहन में दो ही किरदार सबसे पहले उभरते हैं.... एक शोले फिल्म में गब्बर सिंह ( Gabbar Singh in Sholay ) का और दूसरा मिस्टर इंडिया में मोगैम्बो का ( Mogambo in Mister India )... आज की तारीख 22 जून का संबंध मिस्टर इंडिया के मोगैम्बो से है... 22 जून 1932 को पंजाब के नवां शहर में लाला निहाल चंद ( Lala Nihal Chand ) और वेद कौर ( Ved Kaur ) के घर जन्म हुआ था अमरीश लाल पुरी ( Amrish Lal Puri ) का...
ये भी देखें- दोस्ती की खातिर फ्रांस ने अमेरिका को तोहफे में दी थी Statue of Liberty!
आगे चलकर अमरीश संघ से जुड़े... लेकिन कहते हैं कि मंजिल अपना रास्ता तलाश ही लेती है... अमरीश भी दिल्ली और शिमला से पढ़ाई करके बंबई पहुंचे... कठोर अनुशासनप्रिय बाबूजी का जिक्र करते हुए अपनी आत्मकथा में अमरीश ने लिखा है कि पिताजी सिनेमा को भांडबाजी और कंजरों से भरा समझते थे. बड़े भाइयों की अनुपस्थिति में अमरीश कई बार पिता के गुस्से का शिकार बने... चमन और मदन ( Chaman Puri and Madan Puri ), अमरीश से 19 और 17 साल बड़े थे.
पिता की सरकारी नौकरी के साथ साथ वे कभी शिमला रहते तो कभी दिल्ली... अंग्रेजों को दिल्ली की गर्मियां पसंद नहीं थी लिहाजा वे जाते, तो पिता की पोस्टिंग भी शिमला में हो जाती और सर्दियां फिर दिल्ली में बीततीं. पिता की रिटायरमेंट के बाद वे ननिहाल चले गए और फिर वापस पिता ने नौकरी मिलने पर उन्हें अपने पास बुला लिया...
जैसे खतरनाक किरदार अमरीश ने पर्दे पर निभाए, निजी जिंदगी में वे इससे एकदम उलट थे. अमरीश ने आगे चलकर नौकरी के साथ साथ थिएटर शुरू किया... दफ्तर में अमरीश के साथ मेज पर उर्मिला दिवाकर ( Urmila Diwekar ) बैठती थीं. दोनों की नियुक्ति एक ही साथ हुई थी. अमरीश अपर क्लास के क्लर्क थे जबकि उर्मिला लोअर क्लास की.. उर्मिला बहुत शर्मीली थी और बिना काम दफ्तर में किसी से बात भी नहीं करती थीं. उस वक्त 22 साल के अमरीश को वह अच्छी लगने लगीं... अमरीश की इच्छा थी कि बस उर्मिला से दोस्ती हो जाए... लेकिन उर्मिला तो दफ्तर के काम के अलावा अमरीश के किसी सवाल का जवाब ही नहीं देती थीं. बात करने में ही 6 महीने लग गए.
ये भी देखें- देश का सबसे बड़ा रेल हादसा, नदी में समा गए थे ट्रेन के 7 डिब्बे
उर्मिला विनम्र और संकोची थीं लेकिन काम में कुशल... अमरीश अपनी बायोग्राफी में लिखते हैं, जैसे ही मैंने उर्मिला को देखा, ठान लिया शादी करूंगा तो उसी से... उनमें वे सभी गुण थे जो अमरीश को अपनी पत्नी में चाहिए थे. वह एक भारतीय स्वभाव वाली लड़की जो चाहते थें.. पंजाबी और कोंकणी ब्राह्मण वाले इस रिश्ते की भनक 4 साल तक किसी को नहीं लगी... जब परिवार को पता चला तो मानों धरती फट गई...
पिता अड़ गए, मां भी अड़ गईं... एक साल इसी उधेड़बुन में बीता कि या तो अमरीश झुकें या परिवार वाले मान जाएं... मां की तबीयत और खराब होने लगी... अमरीश ने हालांकि ये साफ कर दिया था कि वे शादी उर्मिला से ही करेंगे और भागकर तो बिल्कुल नहीं करेंगे... आखिर में मां ने पिता से वचन ले ही लिया... खुद अमरीश को परिवार की हां वाली इस बात पर यकीन करने में काफी वक्त लगा...
उर्मिला को शादी से पहले किसी ने देखा तक नहीं था... जब वह घर आईं तो पिताजी ने आदेश जारी कर दिया कि उर्मिला से सब पंजाबी में ही बात करेंगे... उर्मिला ने भी सबका मन ऐसा मोहा कि 3 महीने में ही धाराप्रवाह पंजाबी बोलना शुरू कर दिया...
जिंदगी से जुड़े कई किस्से उन्होंने अपनी बायोग्राफी में लिखे हैं... ऐसा ही एक किस्सा पृथ्वीराज कपूर ( Prithviraj Kapoor ) के अंतिम दिनों का है, जब पृथ्वीराज को गले का कैंसर था. टाटा मेमोरियल अस्पताल में वे अक्सर पृथ्वीराज कपूर से मिलने जाया करते थे, जिन्हें पूरा बॉलीवुड पापा जी कहा करता था. यहीं पर पापा जी ने उनसे दरवाजा बंद करने को कहा... फिर उन्होंने गद्दे के नीचे से एक बीड़ी निकाली और खिड़की के पास खड़े होकर जल्दी से पी गए. ताकि कमरे में गंध न फैले. अमरीश ने लिखा कि पापा जी को गले का कैंसर था और उन्हें सिगरेट बिल्कुल भी नहीं पीनी थी लेकिन उनके कृत्य में मैं भी भागीदार बना. कुछ दिन बाद पृथ्वीराज कपूर का निधन हो गया... 15 दिन बाद उनकी पत्नी रोमा भी चल बसीं...
ये भी देखें- इजराइल बना ‘महाशक्ति’…8 अरब देशों को अकेले दे दी मात!
आगे चलकर एक इंटरव्यू में अमरीश पुरी ने कहा था- मैं मानता हूं कि उस समय शाखा में जो संस्कार मुझे मिले उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. आज फिल्म उद्योग में मैं हूं, जहां पतन सबसे ज्यादा होता है. इसके बावजूद मेरा चरित्र विशुद्ध है तो वह संघ संस्कारों के कारण ही. नाटकों से ज्यादा जुड़ गया तो संघ से सम्पर्क कम होता गया मगर संघ संस्कार जीवन से नहीं गए’’. ये इंटरव्यू किशोर मकवाणा ने सिंधु दर्शन 2001 के दौरान लेह में लिया गया था.
अमरीश पुरी का फिल्मी करियर 38 साल में शुरू हुआ
अमरीश पुरी ने 40 साल की उम्र से थोड़ा पहले फिल्मी करियर की शुरुआत की... उम्र का ये वह पड़ाव होता है जब इंसान अपने सपनों को समेटना शुरू कर देता है.... इससे पहले अमरीश थिएटर करते रहे... उन्होंने फिल्मी करियर शुरू होने तक नौकरी को नहीं छोड़ा. इब्राहीम अल्काजी और सत्यदेव दुबे जैसे महान लोगों के साथ उन्होंने थिएटर को समझा और जाना. अमरीश पुरी एक्टिंग के साथ साथ, अपनी भारी भरकम आवाज के लिए भी जाने जाते थे... वह हर रोज कई घंटे का रियाज अपनी आवाज को मजबूत बनाने के लिए किया करते थे.
अमेरिकन डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग को कास्टिंग के लिए अमरीश के पास आना पड़ा क्योंकि अमरीश ने उनके पास जाने से इनकार कर दिया था इंडियाना जोन्स और द टेंबल ऑफ डूम के लिए अमरीश का किरदार सराहा गया..
अमरीश ने सिर्फ विलेन ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसे पॉजिटिव किरदार निभाए जिन्हें देखकर आंखों में आंसू आ जाते हैं
घातक, मुस्कुराहट, विरासत, परदेस में उन्होंने पॉजिटिव किरदार भी निभाएविरासत का रोल पहले दिलीप कुमार और राजेश खन्ना ठुकरा चुके थे... लेकिन जिस किरदार ने उन्हें अमर कर दिया, वह मिस्टर इंडिया में मोगैम्बो का किरदार था... अमरीश पुरी ऐसे विलेन रहे, बड़े बड़े हीरो को भी उन्हें टक्कर देने में मुश्किल आती थी...
ये भी देखें- 25 साल की उम्र में बिरसा कैसे बन गए 'भगवान'? आज है शहादत का दिन
12 जनवरी 2005 में ब्रेन हेमरेज से अमरीश पुरी का देहांत हो गया. परिवार में बेटा राजीव, बेटी नम्रता हैं. पोता वर्धन पुरी ( Vardhan Puri ) फिल्मों की दुनिया में हैं.
शोहरत की बुलंदी पर पहुंचकर भी संयमित जिंदगी जीने वाले अमरीश पुरी के लिए चलते चलते हम फिर से यही कहेंगे... जब तक फिल्मों में खलनायकी जिंदा रहेगी, अमरीश भी जिंदा रहेंगे
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं-
1555: मुगल सम्राट हुमायूं ( Mughal Ruler Humayun ) ने बेटे अकबर को अपना वारिस घोषित किया.
1897: चापेकर भाइयों ( Chapekar Brothers ), दामोदर और बालकृष्ण ने पुणे में एक ब्रिटिश अधिकारी को गोली मार दी.
1906: स्वीडन ने राष्ट्रीय ध्वज ( Sweden National Flag ) अपनाया.
1939: नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' ( Netaji Subhash Chandra Bose Forward Bloc ) की स्थापना की.