बेखौफ बोल और अपने कलम से बेहतरीन अफसाने लिखने वाले सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) जिंदगी को एक बाजी की तरह खेला और हार कर भी जीत हासिल की. उर्दू शायरी (Urdu Poetry) को अगर गालिब (Mirza Ghalib) के हवाले से जानते हैं, तो फिक्शन के लिए सआदत हसन मंटो का नाम सबसे पहले आता है.
11 मई 1912 को पंजाब के लुधियाना में जन्मे सआदत हसन मंटो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के बाद साल 1936 में मुंबई चले गए. वो खुद को 'चलता-फिरता बॉम्बे' कहा करते थे, लेकिन 1947 में हुए बंटवारे के बाद उन्हें बॉम्बे छोड़ना पड़ा और उन्होंने पाकिस्तान का रुख किया. मजह 42 की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
इतनी कम उम्र में भी उन्होंने अपने कलम से जो लिखा वो लाजवाब था. अपने साहित्यिक जीवन में मंटो ने 270 अफसानें यानी कहानियां, 100 से ज्यादा ड्रामे, फिल्मों की कहानियां और संवाद लिखे.
मंटो जो देखते थे वही लिख देते थे. वो अपने आस-पास की होने वाली घटनाओं को कागज पर उतार देते थे. मंटो ने वो लिखा जिसे लिखने में बड़े-बड़े झिझक जाते थे. उन्होंने कहा कि 'जमाने के जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, अगर आप उससे वाकिफ नहीं तो मेरे अफसाने पढ़िए और अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि जमाना नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है.'
सआदत हसन को एक बदनाम, बेशर्म और बेखौफ लेखक कहा गया. उनके ऊपर कई कहानियों को लेकर मुकदमे भी चले. इस लिस्ट में उनकी कहानी 'काली शलवार', 'ठंडा गोश्त', 'बू', 'धुआं' और 'ऊपर, नीचे और दरमियां' शामिल हैं. उन पर कई बार अश्लीलता के मुकदमे चले और पाकिस्तान में 3 महीने की कैद और 300 रुपया ज़ुर्माना भी हुआ.
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