Veerappan: 2000 से ज्यादा हाथियों और 184 लोगों को मारने का आरोप...दशकों तक चला राज, बीस साल तक तलाश और 100 करोड़ रुपये का खर्च हम बात कर रहे हैं कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन की. वीरप्प ने जितना देश की पुलिस को दौड़ाया है उतना शायद ही किसी ने दौड़ाया हो. एक दौर में इस डाकू के खौफ की कहानी लोगों की जुबान पर थी. लगभग 30 सालों तक वीरप्पन का खौफ कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में रहा.
जिसने राजनीति, पुलिस और जंगल को इतनी कहानियां दी कि जब वीरप्पन के ऊपर फिल्म आई, तो लोगों ने कह दिया कि इसमें वो बात नहीं है. अब एक बार फिर उसकी कहानी को पर्दे पर दिखाया जा है. लेकिन इस बार फिल्म नहीं बल्कि ओटीटी पर सीरीज के जरिए. ओटीटी प्लैटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर The Hunt for Veerappan नाम की सीरीज आ चुकी है. ये सीरीज 4 अगस्त को रिलीज हुई है. अब ये सीरीज वीरप्पन की कहानी, हकीकत और उसकी क्रूरता को बयां कर पाएगी या नहीं ये तो सीरीज देखने के बाद ही आपको पता चलेगा.
लेकिन वीरप्पन की असली जिंदगी से जुड़े कुछ खौफनाक किस्से हम आपको सुनाते हैं...
18 जनवरी 1952 को जन्मे वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि उसने 17 साल की उम्र में पहली बार हाथी का शिकार किया था. वीरप्पन को मारने वाले पुलिस अधिकारी और गृह मंत्रालय (MHA) के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार अपनी किताब वीरप्पन 'चेज़िंग द ब्रिगांड' में उसके जन्म से लेकर मौत तक के बारे में बताया गया है. वीरप्पन का पूरा नाम कूस मुनिसामी वीरप्पन गौंडर था.
पुलिस अधिकारी के सर से खेला फुटबॉल
वीरप्पन कितना खूंखार था उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उसने भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी पी श्रीनिवास का सिर काट कर उससे अपने साथियों के साथ फ़ुटबाल खेली थी. ये वही श्रीनिवास थे जिन्होंने वीरप्पन को पहली बार गिरफ़्तार किया था.
जान बचाने के लिए देदी बेटी की बलि
उसकी क्रूरता का आलम ये था कि आपने आप को बचाने के लिए उसने अपनी नवजात बेटी की बलि चढ़ा दी हो. 2002 में उसने कर्नाटक के एक मिनिस्टर नागप्पा को किडनैप कर लिया और मांग पूरी ना होने पर मार दिया. ये वो हरकत थी, जिसने सरकारी तंत्र की वीरप्पन के सामने लाचारी को जाहिर कर दिया.
वीरप्पन को 'भारत का रॉबिनहुड'
आप सोच रहे होंगे कि जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह इतने अपराधों के बाद कैसे बचता रहा. इस सवाल के जवाब में लोग कहते हैं कि जंगलों के अंदर रहने वालों की वो भरपूर मदद किया करता था. उनके लिए वो किसी देवता या हीरो से कम नहीं था. उसकी छवि रॉबिनहुड की थी. इस तरह से उसने ना सिर्फ सुरक्षा बल्कि शासन प्रशासन में मजबूत खुफिया तंत्र स्थापित कर लिया था.
खत्म हुई तलाश
लेकिन आखिरकार दशकों का ये राज और 20 साल की तलाश आखिरकार 18 अक्टूबर 2004 को खत्म हुई. के विजय कुमार और उनकी टीम ने ऑपरेशन कोकून में 5 करोड़ के इनामी डकैत वीरप्पन को मार गिराया. के विजय कुमार के मुताबिक जिस एंबुलेंस में इलाज कराने के लिए वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने जा रहा है था उस पर कुल 338 राउंड गोलियां चलाईं लेकिन हैरानी की बात ये है कि उसे सिर्फ दो गोलियां हीं लगीं.
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