Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि 'पत्नी का भरण पोषण करना पति का कर्तव्य है. पति के पास अगर नौकरी नहीं है तो भी मजदूरी करके प्रतिदिन लगभग 300 से 400 रुपये कमा सकता है, क्योंकि पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए पति बाध्य है.'
उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ की जज रेनू अग्रवाल ने गुजारा भत्ते से जुड़े एक केस में ये टिप्पणी की है. रेनू अग्रवाल ने पारिवारिक अदालत के एक आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. दरअसल, पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता पति को आदेश दिया था कि वह अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2,000 रुपये मासिक दे.
जज अग्रवाल ने निचली अदालत के न्यायाधीश को पत्नी के पक्ष में पहले से दिए गए गुजारा भत्ते के आदेश के तहत वसूली के लिए पति के खिलाफ सभी उपाय अपनाने का निर्देश दिए.
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता स्वस्थ व्यक्ति है और पैसा कमाने में सक्षम है और अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए भी उत्तरदायी है. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘तर्क के तौर पर, अगर अदालत यह मानती है कि पति को अपनी नौकरी से या मारुति वैन के किराये से कोई आय नहीं है, तब भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने 2022 में अंजू गर्ग के मामले में व्यवस्था दी थी.’’
अदालत ने कहा कि वह अकुशल श्रमिक के रूप में न्यूनतम मजदूरी के रूप में प्रतिदिन लगभग 300 रुपये से 400 रुपये कमा सकता है.
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