Allahabad High Court: 'हिंदू विवाह के लिए कन्यादान की रस्म कानूनन जरूरी नहीं है.' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये बात कही है. हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा कि, 'हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के मुताबिक, शादी में कन्यादान की रस्म निभाना आवश्यक नहीं है. इस एक्ट के सेक्शन-7 में बताई गई शर्तों को अगर कोई भी पूरा करता है और उसी के हिसाब से शादी करता है तो उनकी शादी वैलिड मानी जाएगी. भले ही उसमें कन्यादान वाली प्रक्रिया हुई हो या ना हुई हो.
कोर्ट ने क्यों किया कन्यादान का जिक्र ?
असल में हुआ ये कि एक याचिका इस बारे में दायर हुई थी. याचिकाकर्ता ने कन्यादान को हिंदू विवाह के लिए अनिवार्य मानते हुए कहा था कि कन्यादान की रस्म के लिए गवाह पेश किए जाने चाहिए ताकि इसकी जांच हो जाए. इसके बाद फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
कन्यादान किया गया था या नहीं इसका…
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विवाह के दौरान कन्यादान किया गया था या नहीं यह जांचने के लिए दो गवाहों (एक महिला और उसके पिता) की दोबारा जांच की जानी थी, क्योंकि कन्यादान हिंदू विवाह का एक अनिवार्य हिस्सा है. 6 मार्च को ट्रायल कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 311 के तहत गवाहों को वापस बुलाने की याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया था. जो अदालत को किसी मामले में उचित फैसले की जरूरत के अनुसार किसी भी गवाह को बुलाने का अधिकार देता है. ट्रायल कोर्ट के इस आदेश की सत्यता पर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के सामने सवाल उठाया था.
ये भी पढ़ें: Hemant Soren : फ्रिज और टीवी के बिल ने बढ़ाई पूर्व सीएम की मुश्किलें, ED जोड़ रही जमीन घोटाले से तार