Birsa Munda Death Anniversary: युवा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की डेथ एनिवर्सरी पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ीं कुछ बातें. बिरसा आदिवासियों के लिए हमेशा से आवाज उठाते आए और साल 1897 और 1900 के बीच ब्रिटिशर्स और मुंडास के बीच युद्ध शुरू हुआ. इसके बाद 3 मार्च, 1900 में जब बिरसा चक्रधरपुर के जामकोईपाई जंगल में अपनी सेना के साथ आराम कर रहे थे तब उन्हें हिरासत में ले लिया गया था.
बिरसा की मृत्यु 25 साल की उम्र में ही रांची के जेल में हो गयी थी. साल 2000 में बिरसा की याद में उनकी बर्थ एनिवर्सरी 15 नवंबर के दिन झारखंड स्टेट स्थापित किया गया था, जिसे बिरसा मुंडा जयंती के नाम से बनाया जाता है.
यह भी देखें: Today in History, 9th June...: 25 साल की उम्र में बिरसा कैसे बन गए 'भगवान'? आज है शहादत का दिन
बिरसा मुंडा, वह नाम जब देश का आदिवासी समाज जमींदारों, जागीरदारों और ब्रिटिश हुकूमत के शोषण की भट्टी में झुलस रहा था. उस वक्त बिरसा मुंडा (birsa munda) आदिवासी समाज (tribal society) को इन यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए आगे आए. हालांकि, इसकी बड़ी कुर्बानी चुकानी पड़ी थी. बिरसा मंडा के साथी हाथीराम को अंग्रेजो ने जिंदा दफना दिया था. 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा का निधन हो गया. लेकिन सामाजिक सुधार में उनके योगदान की वजह से ही उन्हें भगवान बिरसा मुंडा कहा जाता है.
सामाजिक स्तर पर आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके. इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया. शिक्षा का महत्व समझाया. सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया.
सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरण से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन तो बौखलाया ही, पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई. यह सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए. उन्होंने बिरसा को साजिश रचकर फंसाने की काली करतूतें शुरु कर दीं.
आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों के आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके. बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगे. बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली. आदिवासियों ने 'बेगारी प्रथा' के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया. नतीजा, जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर काम रूक गया.
राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना. उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी. जिसकी वजह से राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी. आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए.
बिरसा मुंडा का प्रभाव सिर्फ आदिवासी समाज तक सीमित नहीं था. यही वजह थी कि ब्रिटिश हुकूमत (british rule) ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था. जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए.