Fat Tax in Fashion Industry: क्या आप ‘फैट टैक्स’ (Fat Tax) के बारे में जानते हैं? नहीं, नहीं हम मोटापे पर लगाम लगाने के लिए जंक फूड (Junk Food) पर लगने वाले टैक्स की बात नहीं कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं फैशन की दुनिया (Fashion World) में लगने वाले फैट टैक्स के बार में. जी हां...फैट टैक्स. चलिये इसपर विस्तार से बात करते हैं.
फैशन की दुनिया में ‘फैट टैक्स’ का मतलब उस एक्स्ट्रा अमाउंट (extra amount) से है जो कस्टमर्स के एक निश्चित साइज़ से अधिक के आउटफिट (outfits) के लिए ली जाती है.
जहां कई कपड़े, स्किनकेयर ब्रांड अपने विज्ञापनों, फैशन शोज़ और कैटलॉग शूट्स में सभी साइज़ और कॉम्प्लेक्शन के मॉडल्स को शोकेस करके So called ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को तोड़ रहे हैं, वहीं कई जाने माने और लग्ज़री ब्रांड्स के पास ओवरसाइज़्ड यानि कि मोटे होने की वजह से लोग बॉडी शेमिंग का शिकार होते हैं खासकर ब्राइड्स टू बी
एक ही जैसे दो शर्ट, डिज़ाइन एक सा..फेबरिक भी एक जैसे. लेकिन प्लस साइज़ वाले कस्टमर को अधिक पैसे देने पड़ते हैं, क्योंकि प्लस साइज़ आउटफिट का प्राइस अधिक होता है. ये एक्स्ट्रा प्राइस बिना कारण और भेदभाव जैसे लगते हैं. हालांकि, रिटेलर्स अपने प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ाने के पीछे ये दलील देते हैं कि एक्स्ट्रा फेबरिक, मैटेरियल और लेबर कॉस्ट प्रोडक्ट के बजट को बढ़ा देते है, जो कि हमेशा सच नहीं होता है.
जब कोई प्रोडक्ट तैयार होता है तो गारमेंट के टोटल कॉस्ट का मुश्किल से 5-6 प्रतिशत ही कपड़े की कुल लागत का होता है. जिससे क्लोदिंग आइट्म्स पर पहले से ही प्रॉफिट मार्जिन होता है.
चक्कर तो ये है कि ब्रांड्स के बाज़ार में जो प्लस-साइज़ कपड़े नहीं बनाते हैं और जो आपसे XL होने के लिए एक्स्ट्रा चार्ज करते हैं, वो ही ब्रांड्स इक्वैलिटी और इन्क्लुसिविटी को दिखाने के लिए अपने कलेक्शन में प्लस साइज़ मॉडल्स को शोकेस करते हैं.