Ikat Print: फैशन की जब बात आती है दुनिया में कई तरह के प्रिंट का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन फ़िलहाल 'इकत' प्रिंट काफ़ी चलन में है और हर कोई इसका दीवाना है. कई वेस्टर्न कपड़ों पर भी इस प्रिंट को देखा जा सकता है जिससे काफ़ी शानदार और बोल्ड लुक आता है. इकत प्रिंट की हिस्ट्री 1000 साल पुरानी है और ना सिर्फ इंडिया बल्कि लगभग 30 देशों में इस प्रिंट को अलग अलग तरीकों से किया जाता है.
हाल ही में यह प्रिंट पैन्ट्स, टॉप, ड्रेसेस और कई महंगे महंगे ब्रांड्स में भी नज़र आने लगा है. यह ब्रांड्स इकत कलेक्शन के नाम से ही इस प्रिंट के बने कपड़ों और डिज़ाइन्स को लांच करती हैं.
यह भी देखें: Fashion Affects Health: फैशन के चक्कर में कहीं बिगड़ ना जाए आपकी सेहत, ध्यान रखें ये ज़रूरी बातें
विद्वानों की मानें तो भारत में इकत बुनाई 12वी शताब्दी ईस्वी पूर्व की है. लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा कि इस प्रिंट का इतिहास सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है.
चलिए जानते हैं यह प्रिंट कहां से शुरू हुआ था और कैसे इतना फेमस हो गया है.
इकत नाम इंडोनेशियाई शब्द 'मेंजिकत' से लिया गया है. इस तकनीक को मध्य, दक्षिण, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका के आस-पास के स्थानों में देखा जा सकता है.
इंडिया में इकत पहले धार्मिक कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किया जाता था और मुख्य रूप से ओडिशा, तेलंगाना और गुजरात में बनाया जाता था.
इकत के कारण ही इंडिया में हैंडलूम को आगे बढ़ने में मदद मिली है और यह प्रिंट किसी भी व्यक्ति के कल्चरल और टेक्सटाइल टेस्ट को दर्शाने के लिए जाना जाता है.
इस प्रिंट को अधिकतर आर्टिस्ट, पत्रकार, वामपंथी बुद्धिजीवी, और बोलचाल की भाषा में 'झोलावाले' कहलाने वाले लोग पहना करते थे.
स्वंतंत्रता के बाद के समय में लेट प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी और उनकी बेस्ट फ्रेंड पुपुल जयकर और अन्य लोग इस प्रिंट को पहना करते थे.
अब यह इकत प्रिंट देश विदेश में छा गया है और वेस्टर्न दुनिया में भी इसका असर देखा जाने लगा है, कई सेलिब्रिटीज जैसे तारा सुतरिया, शिल्पा शेट्टी, भूमि पेडनेकर अपने स्टाइल और ग्रेस के साथ इसे फ्लॉन्ट करती नज़र आती हैं.
यह भी देखें: Fast Fashion: आपका फास्ट फैशन पर्यावरण को पहुंचा रहा है नुकसान, जानिए कैसे कपड़ों से हो रहा बड़ा नुकसान
हम सही तरीके से देखें तो इकत प्रिंट तीन तरह से तैयार किए जाते हैं. ताना इकत, बाने इकत और डबल इकत. ताना इकत में केवल ताने के धागों को ही इकत तकनीक से रंगा जाता है. ताने के धागों को ठोस रंग में रंगा जाता है. इकत पैटर्न ताने में बुने जाने से पहले ही करघे पर लपेटे गए ताने के धागों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
बाने की इकत में यह बाने के धागे की बुनाई होती है जिसमें रंगे पैटर्न होते हैं. इसलिए, बुनाई की प्रक्रिया के दौरान ही पैटर्न दिखाई देता है. ताने की इकत की तुलना में बाने की इकत की बुनाई बहुत धीमी होती है क्योंकि डिजाइन की स्पष्टता बनाए रखने के लिए शटल के प्रत्येक पासिंग के बाद बाने के धागों को सावधानी से समायोजित किया जाना चाहिए.
डबल इकत एक ऐसी तकनीक है जिसमें बुनाई से पहले ताने और बाने दोनों को प्रतिरोधी रंग दिया जाता है. इसे बनाना सबसे कठिन और सबसे महंगा है. डबल इकत का उत्पादन केवल तीन देशों में होता है जिनमें भारत, जापान और इंडोनेशिया शामिल हैं. भारत में गुजरात के पाटन में बनी डबल इकत सबसे जटिल होता है.