बिरयानी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाती है. हैदराबादी और लखनवी बिरयानी के अलावा, कोलकाता की आलू बिरयानी भी दुनियाभर में फेमस है, लेकिन क्या आप बिरयानी में आलू डालने के पीछे की कहानी जानते हैं? चलिए जानते हैं कब और क्यों डाला गया बिरयानी में आलू.
1956 में ब्रिटिश सरकार ने नवाब वाजिद अली शाह को लखनऊ से बेदखल कर कोलकाता भेज दिया था, जिनकी महीने की पेंशन 1 लाख रूपये बांधी गई थी. नवाब साहब के साथ 7 हजार लोग भी कोलकाता गए थे.
रोजाना इतने लोगों की खिदमत करने के कारण नवाब साहब आर्थिक तंगी से जूझने लगे, जिसके कारण सभी लोगों को गोश्त खिलाना संभंव नहीं था.
ऐसे में उन्होंने अपने बावर्चियों को कहा कि कुछ ऐसी तरकीब निकाले, जिससे बिरयानी में मीट कम लगे और टेस्ट भी न बदले. ऐसे में बावर्चियों ने बिरयानी में आलू डालना शुरू किया और यहीं से कोलकाता की बिरयानी में आलू डाला जाने लगा.
कोलकाता बिरयानी में आलू का टेस्ट अलग ही आता है. इसका कारण है आलू को पकाने का तरीका. बिरयानी के लिए आलू को सबसे पहले छिलकर इसमें कई छेद करते हैं. अब आलू को तेज गर्म घी में करीब 1 मिनट तक फ्राई किया जाता है. आलू को फ्राई करने के बाद इन्हें उबलते हुए नमक के पानी में पूरी तरह से पकने दिया जाता है. आलू को पकाने के बाद इन पर केसर डाला जाता है, ताकि आलुओं को रंग सुनहरा हो जाता है.
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