Momos History: मोमोज़ का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है. दिमाग में गर्मा गर्म मोमोज़ की तस्वीर उभरने लगती है और जब मोमोज़ के साथ तीखी और चटपटी चटनी सामने आ जाए तो मज़ा ही दोगुना हो जाता है. मोमोज, हम में से बहुत लोगों की फेवरेट है लेकिन उसकी क्या आपने कभी सोचा है कि भला स्वाद से भरे इन मोमोज़ की शुरुआत कहां से हुई होगी? फूड की दुनिया से निकलकर समोसे, पकौड़े के बीच मोमोज़ हम इंडियंस के लिए स्नैक्स की प्लेट का ज़रूरी हिस्सा कैसे बन गया?
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मोमोज का इतिहास (Momos History in Hindi)
ऐसा माना जाता है कि भारत में इसकी शुरुआत 1960 के दशक में तब हुई जब बहुत बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने अपने देश से पलायन किया और हिंदुस्तान की सरजमीं पहुंचे. इसकी वजह से उनका ये स्वादिष्ट व्यंजन पहले भारत के सिक्किम, मेघालय, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग और कलिमपोंग के पहाड़ी शहरों में पहुंचा और फिर देश के दूसरे मेट्रो और नॉन मेट्रो शहरों तक भी...
मोमोज़ को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. चीन में जहां इसका नाम मोमो हैं वहीं, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के इलाके में इसे Dimsums और dumplings कह जाता है. यूं तो मोमो का नाम चाइनीज़ है लेकिन इसका ओरिजिन नेपाल और तिब्बत है. मोमो एक चाइनीज शब्द है, जिसका मतलब होता है भाप में पकी हुई रोटी.
दरअसल, मोमोज अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति के खानपान का एक अहम हिस्सा हैं. ये जगह तिब्बत बॉर्डर से बिल्कुल लगी हुई है. यहां के लोग मोमोज को पोर्क, सरसों की पत्तियों और हरी सब्जियों की फिलिंग से तैयार करते हैं.
स्टीम से तैयार मोमोज़ को अब कई रूप मिल चुके हैं, लोग इसे सब्ज़ियों के अलावा चिकन, और पनीर की फिलिंग से भी तैयार करते हैं. स्टीम के अलावा लोग मोमोज़ को फ्राई करके, रोस्ट करके इसका स्वाद लेते हैं अब तो तंदूरी मोमोज़, अफगानी मोमोज़, कुरकुरे मोमोज़ यहां तक चॉकलेट मोमोज़ जैसी वाइड वैरायटी आपको बाजार में खाने को मिल जाएंगी.
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