Rooh Afza: चुभती जलती गर्मी में जब थकहारकर स्कूल से घर पहुंचते थे तो मां रूह अफज़ा बनाकर दिया करती थीं. रूह अफज़ा सिर्फ एक ड्रिंक नहीं है हम सबके लिए ये एक इमोशन है. बाजार में कितनी ही ड्रिंक्स आ जाएं लेकिन सबके दिल में रूह अफ्जा ने जो जगह बनाई है वो शायद ही कोई बना पाए.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ड्रिंक को लोगों की दवाई के तौर पर दिया जाता था? दरअसल हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने साल 1906 में पुरानी दिल्ली में यूनानी क्लिनिक खोला जिसका नाम उन्होंने हमदर्द रखा.
साल 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी और लू की वजह से लोग बीमार पड़ने लगे, तब उन्होंने लोगों को खुराक के तौर पर रूह अफज़ा देना शुरू किया था.
धीरे-धीरे रूह अफज़ा सिर्फ दवा न रहकर गर्मी से राहत दिलाने का नायब नुस्खा बना गया है. देखते ही देखते रूह अफज़ा ने लोगों के घर में ऐसे जगह बनाई कि फिर चाहे कोई घर में मेहमान आए, रमजान के महीने में इफ्तार हो या निर्जला एकादशी हो, लगभग हर अवसर पर रूह अफज़ा पीने और पीलाने का चलन बन गया.
रूह अफज़ा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी काफी फेमस हुआ था. बंटवारे के समय अब्दुल मजीद के एक बेटे अब्दुल हमीद भारत में रहे, लेकिन दूसरे बेटे मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए. फिर वहां उन्होंने कराची में हमदर्द की शुरूआत की और वहां से रूह अफज़ा ने पाकिस्तान में भी जगह बना ली.
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