एपिलेप्सी यानि मिर्गी एक नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज़ है. इसमें पेशेंट अपनी बॉडी का कंट्रोल खो देता है जिससे शरीर के किसी एक हिस्से में या पूरी बॉडी में अनचाहे मूवमेंट्स होते हैं.
ये भी देखें: New Covid Variant: ओमिक्रॉन के बाद आया नया कोविड वेरिएंट डेल्टाक्रॉन, जानिए कितना है घातक
दुनिया भर में लोग मिर्गी के बारे में जागरूक नहीं है. सोसायटी में आज भी मिर्गी से प्रभावित लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. लोग इस डिसऑर्डर को लेकर पूरी तरह जागरूक हों इसके लिए हर साल 26 मार्च को पर्पल डे (Purple Day) यानि एपिलेप्सी जागरूकता दिवस (Epilepsy awareness day) मनाया जाता है.
आइए जानते हैं ऐसे मिथकों के बारे में जिन पर लोग आज भी भरोसा करते हैं:
मिथक: मिर्गी एक मानसिक बीमारी है
तथ्य: एपिलेप्सी फाउंडेशन के अनुसार ये एक मेंटल डिज़ीज़ नहीं बल्कि एक कॉमन डिज़ीज़ है. जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक किसी को भी हो सकती है.
मिथक: मिर्गी छूने से फैलती है
तथ्य: WHO के अनुसार मिर्गी नॉन कम्युनिकेबल डिसऑर्डर है. ये छूने से नहीं फैलती है.
मिथक: ये डिसऑर्डर सिर्फ बच्चों को ही होता है
तथ्य: बता दें कि मिर्गी किसी भी उम्र में हो सकती है. जॉन होपकिंस मेडिसिन की एक स्टडी के मुताबिक, मिर्गी से प्रभावित बच्चों को गंभीर दौरे पड़ते हैं.
मिथक: मिर्गी का दौरा पड़ने पर उसे रोकना चाहिए
तथ्य: एपिलेप्सी फाउंडेशन के अनुसार मिर्गी का दौरा पड़ने पर उसे रोकना नहीं चाहिए. इससे मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है.
मिथक: मिर्गी ताउम्र रहती है
तथ्य: मिर्गी कभी ठीक नहीं हो सकती ये कहना सही नहीं होगा क्योंकि मिर्गी से पीड़ित कई लोग दवा और सही ट्रीटमेंट से ठीक हो सकते हैं. बच्चे बढ़ती उम्र के साथ मिर्गी से छुटकारा पा सकते हैं.
मिथक: दौरे के समय चप्पल सुंघानी चाहिए
तथ्य: जब भी मरीज़ को दौरा पड़े तो उनके मुंह में न ही कोई कपड़ा डालें और न ही चप्पल सुंघाएं. इससे उनकी हालत और बिगड़ने का ख़तरा रहता है.
मिथक: बुरी शक्तियों के कारण मिर्गी के दौरे आते हैं
तथ्य: बता दें कि मिर्गी एक कॉमन न्यूरोलॉजिक डिसऑर्डर है. इसका बुरी शक्तियों से कोई संबंध नहीं है. इसका ट्रीटमेंट संभव है. 3 से 5 साल तक मरीज़ की कंडीशन को मॉनीटर कर इलाज किया जाता है. कृपया मिर्गी को अंधविश्वास से न जोड़ें और एपिलेप्सी में पेशेंट को पूरी केयर और ट्रीटमेंट दें.