भारत सरकार ने हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 (National Family Health Survey) की दूसरे फेज़ की रिपोर्ट रिलीज़ की. इस रिपोर्ट के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अभी भी 80 फीसदी लोग बेटे की चाहत (Sex ratio) रखते हैं.
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ये आंकड़ा बताता है कि आज भी समाज में बटियों से ज़्यादा इंपोर्टेंस बेटों की है. भारत अभी भी अपनी पितृसत्तात्मक सोच से बाहर नहीं आ पाया है. इसका सबसे ज़्यादा असर देश की सेक्स रेशो यानी लिंगानुपात में देखने को मिलता है. 2011 में हुई जनगणना में 1000 पुरुषों पर मात्र 940 महिलाएं थीं.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि 16 प्रतिशत पुरुष और 14 प्रतिशत महिलाएं यानी 15 प्रतिशत लोग बेटा पैदा करना चाहते हैं और इस चाहत में उन्हें बेटियां हो जाती हैं.
15-49 साल के बीच की लगभग 65 प्रतिशत महिलाएं जिन्हें कम से कम दो बेटियां हैं अब बेटा नहीं चाहती. पिछले सर्वे में ऐसी महिलाओं की संख्या 63 प्रतिशत थी.
ताज़ा रिपोर्ट में बेटी पैदा करने की इच्छा रखने वालों की संख्या 4.96 प्रतिशत से बढ़कर 5.17 हो गई है.
देश की आबादी को देखते हुए ये खबर अच्छी तो है लेकिन जानकारों की मानें तो भारत जैसे देश में सेक्स रेशो के बीच का ये डिफरेंस दूर करना सबसे ज़रूरी है.