अपनी सैक्शुअल हेल्थ और फर्टिलिटी से जुड़ी महिलाओं को अनके ऐसी समस्याएं होती हैं जिनसे वो अवेयर नहीं होती. कुछ झिझक और कुछ इलाज के डर से वो अकसर अपनी कई बीमारियों को इग्नोर कर देती हैं. वर्ल्ड हेल्थ डे (World Health Day) पर हम आपको ऐसे मिथकों के बारे में बताएंगे जिनकी वजह से महिलाओं को गायनी (Gynaecologist) संबंधित बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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मिथक: हमें तब तक एक गायनेकॉलॉजिस्ट को नहीं कंसल्ट करना चाहिए जब तक हम प्रेग्नेंट न हों और प्रेग्नेंसी से जुड़ी कोई परेशानी न हो. मैं पूरी तरह फिट हूं और नॉर्मल मेडिकल चेक अप ही काफी है
सत्य: अगर आप रेगुलर इंटर्वल पर हेल्थ चेक अप करवा रहे हैं पिर भी आपको एक गायनेकोलॉजिस्ट से ज़रूर इवैल्युएशन करवानी चाहिए.
प्रेग्नेंसी के अलावा हमारे शरीर में और भी कई तरह बदलाव आते हैं. 21 साल की उम्र के बाद हर तीसरे साल पैप स्मीयर (सर्वाइकल कैंसर के लिए टैस्ट) ज़रूर करवाएं. 30 साल की उम्र के बाद HPV टेस्ट और पैप स्मीयर ज़रूर करवाएं. 40 साल की उम्र के बाद हर साल आपको ब्रेस्ट एग्ज़ामिनेशन, पेल्विस, ट्रांस वेजाइनल सोनो ग्रापी और मैमोग्राफी करवानी चाहिए. प्रेग्नेंसी के अलावा ओवेरियन सिस्ट, PID, UTI,एंडोमेट्रोसिस, एबनॉर्मल ब्लीडिंग और मेनोपॉज़ से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं.
मिथक: मेरा और मेरी बेटी दोनों को HPV वैक्सीनेशन किया जा चुका है. अब मुझे पैप स्मियर करवाने की ज़रूरत नहीं है. मेरे शरीर में वायरस के ख़िलाफ एंटीबॉडीज़ बन गई हैं
सत्य: बहुत से लोगों को ये जानकारी भी नहीं है कि 9-26 साल के बीच HPV वैक्सीनेशन लगवाने की ज़रूरत है. HPV सिर्फ सर्वाइकल कैंसर से नहीं बचाता. इसे लगवाने से आप वैजाइनल, वल्वल और एनल कैंसर से बचते हैं. याद रखें कि आपको पैप स्मियर और HPV टेस्ट ज़रूर करवानी चाहिए.
मिथक : पैप स्मियर टैस्ट सैक्शुअली ट्रांसमिटेड डिज़ीज़ के लिए है
सत्य: पैप स्मियर टेस्ट सर्वाइकल कैंसर के लिए एक स्क्रिनिंग टेस्ट है जो HPV से ट्रांसमिट हो सकता है. पैप स्मियर हर तरह की सैक्शुअल ट्रांसमिटेड डिज़ीज़ के लिए नहीं किया जाता है. अपने गाइनेकॉलॉजिस्ट से अपनी सैक्शुअल हिस्ट्री ज़रूर बताएं. क्लामेडिया ट्रैकोमैटिस, नाइसीरिया गोनेर्हिया, कैंडिडा हेपाटाइटिस बी, HIV. इनमें से ज़्यादातर इंफेक्शन का इलाज़ किया जा सकता है. ज़्यादा लंबे समय तक इंफेक्शन रहने पर ट्युबल बलॉकेज, इंफर्टिलिटी और ट्युबल प्रेग्नेंसी होने के चांसेज़ रहते हैं इसलिए अपनी हेल्थ को लेकर सजग बनें.
मिथक : उम्र के साथ मेनोपॉज़ होना आम है. इसे सहजता के साथ स्वीकार करना चाहिए
सत्य: लोगों के मन में ये भ्रांति है कि मेनोपॉज़ की समस्या से आसानी से निपटाजा सकता है. एक मेनोपॉज़ तक पहुंच चुकी महिला से पूछिए-पसीना, गर्मी, इरिटेशन गुस्सा, कमज़ोर हड्डियां. पेनफुल कॉइटस की वडजह से सैक्शुअल लाइफ़ का ख़त्म होना. ये वो आम चीजें हैं जिससे मेनोपॉज़ के बाद वुमेन्स को रोज़ाना झेलना पड़ता है. इसके लिए मेनोपॉज़ल हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी मोज़ूद है. कई साल पहले इसे गाइनेकॉलॉजिकल कैंसर जैसे ब्रेस्ट और ओवरी के कैंसर होने के ख़तरे की वजह से इस्तेमाल में हिचकिचाहट थी. हाल ही में हुई कई स्टडी के अनुसार ये पूरी तरह सेफ़ है.
मिथक: मदरहुड एक ब्लेसिंग है और सभी महिलाएं इससे नैचुरली डील करती हैं
सत्य: प्रेग्नेंसी अपने साथ कई ऐसे इशूज़ लेकर आती है जिससे हम अवेयर नहीं होते. पोस्ट पार्टम प्रॉब्लम जिनमें से सबसे कॉमन है. एक बच्चे के पैदा होने के बाद, लैक्टेशन से जुड़ी समस्याएं, पोस्टापार्टम डिप्रेशन, थकान, एलोपीशिया, एनीमिया होना आम है.
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उम्र के हर पड़ाव पर इस तरह की अनेकों समस्याओं का सामना आपको करना पड़ सकता है. ऐसे में इनसे अवेयर होना बहुत ज़रूरी है. इसके अलावा लाइफ़ में इस तरह की किसी भी परेशानी के आने पर अपने पार्टनर, फैमिली, फ्रेंड्स और डॉक्टर को ज़रूर बताएं.