June as Pride Month: प्राइड मंथ (Pride Month)... एक ऐसा आयोजन जिसकी शुरुआत तो अमेरिका से हुई लेकिन अब ये लगभग हर देश का हिस्सा बन गया है. ‘प्राइड मंथ’ शब्द जितना आम है उतना गहरा भी है. प्राइड मंथ LGBTQ प्लस कम्यूनिटी (LGBTQ+ Community) के अधिकारों और उनके कल्चर का जश्न मनाता है और उन्हें सपोर्ट करता है.
जून का महीना प्राइड मंथ होता है. लेकिन आखिर जून का महीना ही क्यों? क्या है प्राइड मंथ और जून का रिश्ता चलिये आपको इससे रूबरू कराते हैं?
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लेस्बियन (Lesbian), गे (Gay), बायसेक्शुअल (Bisexual), ट्रांस (Trans) और क्वीअर (Queer) का ही छोटा रूप है LGBTQ. यूं तो प्राइड मंथ की आधिकारिक घोषणा साल 2000 में हुई थी लेकिन इसके पीछे का इतिहास 60 के दशक से जुड़ा है. बात 1969 की है. जून के महीने में मैनहट्टन के स्टोनवॉल इन (Stonewall inn) में पुलिस ने समलैंगिक समुदाय के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी थी. कई समलैंगिक बार में घुसकर पुलिस ने मारपीट की. समलैंगिकों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया. उस समय तक, समलैंगिकों को कानूनी अधिकार नहीं मिले हुए थे. समलैंगिकों ने पुलिस के अत्याचारों का पुरजोर विरोध किया. यही पलटवार एक प्रतीक बन गया जो अगले साल बड़े आंदोलन के रूप में सामने आया. साल 1970 में न्यूयॉर्क सिटी में जून महीने में पहला प्राइड मार्च (Pride March) हुआ था
आपने अक्सर एक रंगीन झंडे को LGBTQ+ से जुड़े इवेंट्स में देखा होगा. ये झंडा गे राइट्स के एक्टिविस्ट और आर्टिस्ट गिल्बर्ट बेकर ने डिज़ाइन किया था. कम्यूनिटी की डिमांड पर बेकर ने रेनबो यानि इंद्रधनुष से इंस्पायर्ड झंडा डिज़ाइन किया. हालांकि, ये रेनबो का इनवर्टेड यानि उल्टा रूप है जहां ये लाल रंग से शुरू होकर बैंगनी पर खत्म होता है. इस झंडे के ज़रिये वो विविधता के बारे में दिखाना चाहते थे. पहले तो उन्होंने 8 रंगों वाला झंडा डिजाइन किया था और हर रंग किसी न किसी चीज़ को जाहिर करता है. लेकिन फिर बाद में उन्होंने दो रंगों को हटा दिया था. अब झंडे में 6 रंग हैं.
भारत में पहली बार प्राइड परेड का आयोजन साल 1999 में किया गया था. 2 जुलाई 1999 को कोलकाता में निकाले गए इस प्राइड परेड को कोलकाता रेनबो प्राइड वॉक का नाम दिया गया था. इसमें कोलकाता के अलावा मुंबई, बेंगलुरू समेत कई शहरों के लोगों ने हिस्सा लिया था
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