देवताओं में भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं जिन्हें महादेव कहा जाता है. जिनमें आस्था रखने वाले लोगों की कोई कमी नहीं हैं. कहते हैं कि स्वभाव से भोले होने के कारण इनका एक नाम भोलेनाथ पड़ा था. भगवान शिव की वेशभूषा और पूजा साधना भी दूसरे देवी-देवताओं से एकदम अलग है. भगवान भोलेनाथ वहां पर निवास करते हैं जहां कोई दूसरा नहीं रह सकता, उनके मस्तक पर चंद्रमा, जटा में गंगा, गले में सांप और हाथ में त्रिशूल और डमरू सुशोभित रहते हैं, जिनके पीछे पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं
शिव के हाथ में त्रिशूल कैसे आया इसके पीछे की मान्यता है कि जब इस सृष्टि के जन्म के समय ब्रह्मनाद से जब शिव प्रकट हुए तो उनके साथ रज, तम और तस नाम के तीन गुणों का जन्म भी हुआ. यही तीनों गुण शिव जी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने, त्रिशूल के तीन भागों को जन्म, पालन और मृत्यु का सूचक माना जाता है. साथ ही तीनों काल भूत,वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल में समाते हैं.
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सृष्टि के आरंभ में जब सरस्वती उत्पन्न हुईं तो वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया, लेकिन ये सुर और संगीत विहीन थी. उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ. इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई