नाटक, चाहे वो मंच पर हो या किसी मोहल्ले के नुक्कड़ पर, दर्शकों के मन पर अपनी अलग छाप छोड़ता है. नाटक की इस विधा को जीवित रखने के लिए और सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए ही हर साल 27 मार्च को World Theatre Day मनाया जाता है. जब सिनेमा नहीं हुआ करता था, तब लोगों के मनोरंजन का साधन रंगमंच हुआ करता था. आज के वक़्त में जब सिनेमा का क्रेज लोगों के बीच काफी तेज़ी से बड़ा है, एक तबका ऐसा है जिसके लिए रंगमंच पूज्यनीय है, जो रंगमंच में दिलचस्पी रखता है, क्योंकि इनका मानना है कि रंगमंच ना सिर्फ मनोरंजन का साधन है बल्कि ये लोगों को सामाजिक और भावात्मक रूप से जगाने का भी साधन है.
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विश्व रंगमंच दिवस पर, ज़ी थिएटर इसी भावना को "थिएटर के किस्से" थीम के साथ मना रहा है. मिलिए ज़ी थियेटर के कुछ सितारों से जिनकी अपनी रचनात्मक यात्रा कई अविस्मरणीय कहानियों से भरी हुई है और जिनका थिएटर के प्रति प्यार समय के साथ और मज़बूत होता गया
अहाना कुमरा
ओटीटी, स्टेज और बड़े पर्दे की स्टार अहाना कुमरा कहती हैं, “मेरे लिए थिएटर ही वो कारण है जिससे मैं एक्ट्रेस बनी. ये स्नैपशॉट मोटले के लिए मेरे पहले सोल्ड आउट शो ‘बाय जॉर्ज’ से है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि नसीरुद्दीन शाह ने डायरेक्ट किया था. ये एक ऐसी कहानी की शुरुआत थी जिसका मैं आज तक हिस्सा बनी रहा हूं”
हिमानी शिवपुरी
जानी-मानी एक्ट्रेस हिमानी शिवपुरी अपनी इस जर्नी को बड़े ही आश्चर्य के साथ देखती हैं और कहती हैं, “मेरी कहानी ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में MSc करते समय शुरू हुई, जब मुझे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बारे में पता चला और इसमें शामिल होने के लिए अपना एकैडमिक करियर छोड़ दिया. मैं एनएसडी रिपर्टरी कंपनी में शामिल हो गई जहां मैंने ‘मित्रो मरजानी’, ‘ओथेलो’, ‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’ और ‘आजार का ख्वाब’ जैसे खूबसूरत नाटक किए. मेरी सबसे यादगार भूमिका ‘मित्रो मरजानी’ में थी जो कृष्णा सोबती के साहित्य पुरस्कार विजेता उपन्यास पर आधारित थी
दिलनाज़ ईरानी
कई माध्यमों पर प्रभाव डालने वाली दिलनाज़ ईरानी कहती हैं, "मेरी यात्रा मेरे पहले कमर्शियल प्ले 'आई एम नॉट बाजीराव' से शुरू हुई थी. तब से, जब भी मैं 2000वीं बार कोई नाटक करती हूं, तो मुझे लगता है कि ये उसी कहानी का हिस्सा है जो सालों पहले शुरू हुई थी. थिएटर एक ऐसा कीड़ा है कि अगर एक बार अगर आपको ये काट ले तो समझो इससे कोई पीछे नहीं हटता है. इसका कोई एंटीडोट नहीं है. मैं दुनिया में किसी भी चीज़ के लिए इसे नहीं छोड़ सकती. थियेटर ऐसी जगह है जहां आप एक ही समय पर मैं खुद हो सकती हूं और साथ ही किसी और का जीवन भी जी सकती हूं
राजीव सिद्धार्थ
जाने माने आर्टिस्ट राजीव सिद्धार्थ बताते हैं कि “मेरी थिएटर की कहानी तब शुरू हुई जब मैं सिर्फ आठ साल का था और ‘द स्टोन सूप’ नाम का एक नाटक किया था. मुझे मंच पर आना था, अपनी जैकेट उतारनी थी और अपनी लाइनें कहनी था. मुझे लगता है, ये लाइफ की जर्नी और एक्सप्लोरेशन की शुरुआत थी. एक प्रोफेशनल एक्टर के रूप में कई नाटक करने का सौभाग्य मिला है और मैं गर्व से कहता हूं कि जब भी मैं स्टेज पर एंट्री लेता हूं तो मुझे घर जैसा एहसास होता है.
करण वीर मेहरा
थियेटर के बारे में बताते हुए टेलीविज़न और थियेटर ऐक्टर करण वीर मेहरा अक्सर यादों में खो जाते हैं कि कैसे पहले वो अपनी मां के साथ बच्चे की तरह नाटक देखा करते थे और वही उनकी आर्ट और क्रिएटिविटी की शुरुआत थी. उन्होंने ली स्ट्रासबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट के क्रिएटिव डायरेक्टर और ली स्ट्रासबर्ग के बेटे डेविड ली स्ट्रासबर्ग के साथ अपनी तस्वीर भी दिखाई जब उन्हें उनसे योग्यता प्रमाण पत्र मिला था.